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________________ ९६० प्रमाणहे उदिट्ठतसाहिया वयविवागपरिणामा । हिय निस्सेयसफलवई, बुद्धी परिणामिया नाम ॥ जैनागम दिग्दर्शन श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के भी चार भेद हैं : १. अवग्रह२. ईहा, ३. अवाय, ४. धारणा । प्रवग्रह दो प्रकार का है : अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह | व्यंजनावग्रह चार प्रकार का है : १. श्रोत्र न्द्रियव्यंजनावग्रह, २. घ्राणेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, ३. जिह्व ेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, ४. स्पर्शेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह | अर्थावग्रह छः प्रकार का है : १. श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, श्रोत्रेन्द्रिय- श्रर्थावग्रह २. चक्षुरिन्द्रिय-प्रर्थावग्रह, ३. घ्राणेन्द्रियअर्थावग्रह, ४. जिह्व ेन्द्रिय-प्रर्थावग्रह, ५ स्पर्शेन्द्रिय अर्थावग्रह, ६. नोइन्द्रिय ( मन ) - अर्थावग्रह । अवग्रह के ये पांच नाम एकार्थक हैं:अवग्रहणता, उपधारणता, श्रवणता, अवलम्बनता और मेधा । - गा० ७८ हा भी अर्थावग्रह की ही भांति छः प्रकार की होती है । ईहा के एकार्थक शब्द हैं :- आभोगनता, मार्गणता, गवेषणता, चिन्ता और विमर्श | अवाय भी श्रोत्रेन्द्रिय आदि से छः प्रकार का है । इसके एकार्थक नाम हैं :- प्रवर्त्तनता, प्रत्यावर्त्तनता, अपाय, बुद्धि और विज्ञान | धारणा भी पूर्वोक्त रीति से छः प्रकार की है । इसके एकार्थक पदये हैं: - धरण, धारणा, स्थापना, प्रतिष्ठा और कोष्ठ । मतिज्ञान की प्रवग्रह आदि अवस्थाओं का कालमान बताते हुए प्राचार्य कहते हैं कि अवग्रह एक समय तक रहता है, ईहा की अवस्थिति अन्तर्मुहूर्त है, अवाय भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है, धारणा संख्येय अथवा असंख्येय काल तक रहती है । Jain Education International : अवग्रह के एक भेद व्यंजनावग्रह का स्वरूप समझाने के लिए जैसे कोई पुरुष किसी सोये हुए अमुक ! ऐसा कहकर जगाता है । उसे कानों में प्रविष्ट एक समय के शब्द - पुद्गल सुनाई नहीं देते, सूत्रकार ने दृष्टान्त भी दिया है व्यक्ति को प्रो अमुक ! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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