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________________ "पैतालीस मागम १४३ के लिए भिक्षु-जीवन अत्यन्त पालादमय है। पर, भौतिक दृष्टि से उसमें अनेक कठिनाइयां हैं, पद-पद पर असुविधाएँ हैं। क्षण-क्षण प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ता है । दैहिक भोग अग्राह्य हैं ही। ये सब प्रसंग ऐसे हैं, जिसके कारण कभी-कभी मानव-मन में दुर्बलता उभरने लगती है। यदि कभी कोई भिक्षु ऐसी मनःस्थिति में आ जाएँ, तो उसे संयम में टिकाये रखने के लिए, उसमें पुनः इंढ़ मनोबल जगाने के लिए उसे जो अन्तः-प्रेरक तथा उद्बोधक विचार दिये जाने चाहिए, वही सब प्रस्तुत चूलिका में विवेचित है। सांसारिक जीवन की दुःखमयता, विषमता, भोगों की निःसारता, अल्पकालिकता, परिणाम-विरसता, अनित्यता, संयमी जीवन की सारमयता, पवित्रता, आदेयता आदि विभिन्न पहलुओं पर विशद-प्रकाश डाला गया है तथा मानव में प्राणपण से धर्म का प्रतिपालन करने का भाव भरा गया है। वैषयिक भोग, वासना, लौकिक सुविधा और दैहिक सुख से आकृष्ट होते मानव को उनसे हटा आत्म-रमण, संयमानुपालन तथा तितिक्षामय जीवन में पुनः प्रत्यावृत्त करने में बड़ी मनोवैज्ञानिक निरूपण शैली का व्यवहार हुआ है, जो रोचक होने के साथ शक्ति-संचारक भी है। संयम में रति-अनुराग-तन्मयता उत्पन्न करने वाले वाक्यों की संरचना होने के कारण ही सम्भवतः इस चूलिका का नाम 'रति वाक्या' रखा गया हो। विविक्तचर्या दूसरी चूलिका विविक्तचर्या है। विविक्त का अर्थ नियुक्त, पृथक्, निवृत्त, एकाकी, एकान्त स्थान या विवेकशील है। इसका आशय उस जीवन से है, जो सांसारिकता से पृथक् है । दूसरे शब्दों में निवृत्त है; अतएव विवेकशील है। इस चूलिका में श्रमण जीवन को उद्दिष्ट कर अनुस्रोत में न बह प्रतिस्रोतगामी बनने, प्राचार-पालन में पराक्रमशील रहने, अल्प-सीमित उपकरण रखने, गृहस्थ से वैयावृत्य-शारीरिक सेवा न लेने, सब इन्द्रियों को सुसमाहित कर संयम-जीवन को सदा सुरक्षित बनाये रखने आदि के सन्दर्भ में अनेक ऐसे उत्लेख किये गये हैं, जिनका अनुसरण करता हुमा भिक्षु प्रतिबुद्धजीवी बनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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