________________
१३४
जैनागम दिग्दर्शन
बुद्ध द्वारा प्रतिपादित है । दशवां द्र मपुष्पिका अध्ययन स्वयं अर्हत् महावीर द्वारा भाषित है । तेईसवाँ केशि - गौतमीय अध्ययन संवादरूप में आकलित है ।
'भद्रबाहुना प्रोक्तानि' का अभिप्राय
- इस
" भद्रबाहुना प्रोक्तानि भाद्रबाह्वानि उत्तराध्ययनानि प्रकार का भी उल्लेख प्राप्त होता है, जिससे कुछ विद्वान् सोचते हैं कि उत्तराध्ययन के रचयिता प्राचार्य भद्रबाहु हैं । सबसे पहले विचारणीय यह है कि उत्तराध्ययन की नियुक्ति के लेखक भद्रबाहु हैं । जैसा कि पूर्व सूचित किया गया है, वे उत्तराध्ययन की रचना में अंगप्रभवता जिन भाषितता, प्रत्येकबुद्ध प्रतिपादितता, संवाद- निष्पन्नता आदि कई प्रकार के उपपादक हेतुत्रों का प्राख्यान करते हैं । उपर्युक्त कथन से 'भद्रबाहुना' के साथ 'प्रोक्तानि' क्रिया- पद प्रयुक्त हुआ है। प्रोक्तानि का अर्थ 'रचितानि' नहीं होता । प्रकर्षेण उक्तानि - प्रोक्तानि के अनुसार उसका अर्थ विशेष रूप से व्याख्यात, विवेचित या अध्यापित होता है । शाकटायन' और सिद्ध हैमशब्दानुशासन आदि व्याकरणों में यही आशय स्पष्ट किया गया है। इस विवेचन के अनुसार प्राचार्य भद्रबाहु उत्तराध्ययन के प्रकृष्ट व्याख्याता, प्रवक्ता या प्राध्यापयिता हो सकते हैं, रचयिता नहीं ।
कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं, उत्तराध्ययन के पूर्वार्द्ध के अठारह अध्ययन प्राचीन हैं तथा उत्तरार्द्ध के अठारह अध्ययन अर्वाचीन । इसके लिए भी कोई प्रमाण-भूत या इत्थंभूत भेद - रेखा - मूलक तथ्य या ठोस आधार नहीं मिलते |
विमर्ष : समीक्षा
समीक्षात्मक दृष्टि से चिन्तन करें, तो यह समग्र आगम भगवान् महावीर द्वारा ही भाषित हुआ हो या किसी एक व्यक्ति ने इसकी
१. टः प्रोक्ते ३ / १ /
६६
२. तेन प्रोक्ते ६ / ३ / १८
"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
शाकटायन
- सिद्ध है मशब्दानुशासनम्
www.jainelibrary.org