SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३३ पैंतालीस प्रागम उत्तराध्ययन सूत्र छत्तीस अध्ययनों में विभक्त है । समवायांग सूत्र के छत्तीसवें समवाय में उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययनों के शीर्षकों का उल्लेख है, जो उत्तराध्ययन में प्राप्त अध्ययनों के नामों से मिलते हैं । उत्तराध्ययन के जीवाजीवविभक्ति संज्ञक छत्तीसवें अध्ययन के अन्त में अग्रांकित शब्दों में इस ओर संकेत है: "भवसिद्धिक जीवों के लिये सम्मत उत्तराध्ययन क े छत्तीस अध्ययन प्रादुर्भूत कर ज्ञातपुत्र सर्वज्ञ भगवान् महावीर परिनिवृत मुक्त हो गये । " " उत्तराध्ययन के नाम सम्बन्धी विश्लेषण के प्रसंग में यह चर्चित हुआ ही है कि भगवान् महावीर ने अपने अन्त समय में इन छत्तीस अध्ययनों का व्याख्यान किया । नियुक्तिकार का श्रभिमत नियुक्तिकार प्राचार्य भद्रबाहु का अभिमत उपर्युक्त पारम्परिक मान्यता के प्रतिकूल है । उन्होंने इस सम्बन्ध में नियुक्ति में लिखा है: "उत्तराध्ययन के कुछ अध्ययन अंग-प्रभव हैं, कुछ जिनभाषित हैं, कुछ प्रत्येकबुद्धों द्वारा निर्देशित हैं, कुछ संवाद- प्रसूत हैं । इस प्रकार बन्धन से छूटने का मार्ग बताने के हेतु उसके छत्तीस अध्ययन निर्मित हुए ।" " चूर्णिकार श्री जिनदास महत्तर और बृहद्वृत्तिकार वादिवैताल श्री शान्तिसूरि ने नियुक्तिकार के मत को स्वीकार किया है । उनके अनुसार उत्तराध्ययन के दूसरे परिषहाध्ययन की रचना द्वादशांगी के बारहवें अंग दृष्टिवाद के कर्मप्रवादसंज्ञक पूर्व के ७० वें प्राभृत के आधार पर हुई है । अष्टम कापिलीय अध्ययन कपिल नामक प्रत्येक १. इह पाउकरे बुद्ध गायये परिणिव्वए । छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धिय सम्मए ॥ २. जैन - परम्परा में ऐसा माना जाता है कि दीपावली की अन्तिम रात्रि में भगवान् महावीर ने इन छत्तीस अध्ययनों का निरूपण किया । ३. गप्पभवा जिरणभासिया य पत्ते यबुद्धसंवाया । वंधे मुक्या कया, छत्तीसं उत्तरज्भयरणा । । Jain Education International For Private & Personal Use Only - नियुक्ति, गाथा ४ www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy