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________________ पैतालीस मागम विमर्ष . कल्पसूत्रकार तथा टीकाकारों द्वारा दिया गया समाधान तथा प्रो. ल्युमैन द्वारा किया गया विवेचन; दोनों परस्पर भिन्न हैं। भगवान महावीर ने बिना पूछे छत्तीस प्रश्नों के उत्तर दिये, उनका संकलन हुअा -उत्तराध्ययन के अस्तित्व में आने के सम्बन्ध में यह कल्पना परम्परा-पुष्ट होते हुए भी उतनी हृद्-ग्राह्य प्रतीत नहीं होती। भगवान् महावीर ने अपृष्ट प्रश्नों के उत्तर दिये, इसके स्थान पर यह भाषा क्या अधिक संगत नहीं प्रतीत होती कि उन्होंने अन्तिम समय में कुछ धार्मिक उपदेश, विचार या सन्देश दिये। फिर वहां उत्तर शब्द भी न आ कर 'व्याकरण' शब्द आया है, जिसका अर्थ-विश्लेषण है। यदि अन्तिम के अर्थ में उत्तर शब्द का प्रयोग मानो जाता, तो फिर कुछ संगति होती। पर, जवाब के अर्थ में उत्तर शब्द का यहां ग्रहण उत्तराध्ययन सूत्र के स्वरूप के साथ सम्भवतः उतना मेल नहीं खाता जितना होना चाहिए। उत्तराध्ययन में दृष्टान्त हैं, कथानक हैं, घटनाक्रम हैं-यह सब उत्तर शब्द के अभिप्राय में अन्तर्भूत हो जाएँ, कम संगत प्रतीत होता है । साहित्यिक दृष्टि से भी उत्तर शब्द वस्तुतः प्रश्न-सापेक्ष है। प्रश्न के बिना जो कुछ भी कहा जाए, वह व्याख्यान, विवेचन, विश्लेषण, निरूपण आदि सब हो सकता है, पर, उसे उत्तर कैसे कहा जाए? नियुक्तिकार ने उत्तराध्ययन की रचना के सम्बन्ध में जो लिखा है, उससे यही तथ्य बाधित है। प्रो० ल्युमैन ने जो कहा है उसकी तार्किक असंगति नहीं है । भाषाशास्त्रियों ने जो परिशीलन किया है, उसके अनुसार उत्तराध्ययन की भाषा प्राचीन है, पर, उससे प्रो० ल्युमैन का कथन खण्डित नहीं होता। उन्होंने इसकी विशेष अर्वाचीनता तो स्थापित की नहीं है, इसे अंगग्रन्थों से पश्चाद्वी बताया है। वैसा करने में कोई असम्भावना प्रतीत नहीं होती। एक प्रश्न और उठता है, अंग-ग्रन्थों के पश्चाद्वर्ती तो अनेक ग्रन्थ हैं, पश्चाद्वर्तिता या उत्तरवर्तिता के कारण केवल इसे ही उत्तरा. ध्ययन क्यों कहा गया ? इस सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि यह अंग ग्रन्थों के समकक्ष महत्व लिये हुए है। रचना, विषय-वस्तु, विश्लेषण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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