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पैतालीस प्रागम
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के शिक्षण की दृष्टि से मूल-सूत्र नाम दिये जाने का समाधान प्रस्तुत किया है, वह भी मूल-सूत्रों के अन्तर्गत माने जाने वाले सब ग्रन्थों पर कहां घटता है ? दशवैकालिक की तो लगभग वैसी स्थिति है, पर, अन्यत्र बहुलांशतया वैसा नहीं है। उत्तराध्ययन में, जो मूल-सूत्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, श्रमण-चर्या से सम्बद्ध नियमोपनियमों तथा विधि-विधानों के अतिरिक्त उसमें जैन-धर्म और दर्शन-सम्बन्धी अनेक विषय व्याख्यात किये गये हैं । अनेक दृष्टान्त, कथानक तथा ऐतिहासिक घटना-क्रम भी उपस्थित किये गये हैं, जो श्रमण-संस्कृति और जैन तत्त्व-धारा के विविध पहलुओं से जुड़े हुए हैं; इसलिए डा. वाल्टर शुब्रिग के समाधान को भी एकांगी चिन्तन से अधिक नहीं कहा जा सकता। मूल-सूत्रों में जो सन्निहित है, शुबिंग की व्याख्या में वह सम्पूर्णतया अन्तर्भूत नहीं होता ।
___ इटालियन विद्वान् प्रो. गेरीनो ने मूल और टीका के आधार पर मूल-सूत्र नाम पड़ने की कल्पना की है, वह बहुत स्थूल तथा बहिर्गामी चिन्तन पर आधृत है। उसमें सूक्ष्म गवेषणा या गहन विमर्ष की दृष्टि प्रतीत नहीं होती। मूल-सूत्रों के अतिरिक्त अन्य सूत्रों पर भी अनेक टीकाएँ हैं । परिणाम की न्यूनता-अधिकता हो सकती है। उससे कोई विशेष फलित निष्पन्न नहीं होता; अतः इस विश्लेषण की अनुपादेयता स्पष्ट है।
उपर्युक्त ऊहापोह के सन्दर्भ में विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि जैन दर्शन, धर्म, प्राचार एवं जीवन के मूलभूत आदर्शों, सिद्धान्तों या तथ्यों का विश्लेषण अपने आप में सहेजे रखने के कारण सम्भवतः ये मल-सूत्र कहे जाने लगे हों। मुख्यतः उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिक की विषय-वस्तु पर यदि दृष्टिपात किया जाए, तो यह स्पष्ट प्रतिभासित होगा।
१. उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन) नाम : विश्लेषण
उत्तराध्ययन शाब्दिक दृष्टि से उत्तर और अध्ययन; इन दो शब्दों की समन्विति से बना है। उत्तर शब्द का एक अर्थ पश्चात् या
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