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________________ १२८ जैनागम दिग्दर्शन प्रो० गेरोनो की कल्पना जैन शास्त्रों के गहन अनुशीलक इटली के प्रफेसर गेरीनो (Prof. Guerinot) ने इस सम्बन्ध में एक दूसरी कल्पना की है। वैसा करते समय उनके मस्तिष्क में ग्रन्थ के दो 'मल' और 'टीका' का ध्यान रहा है; अतः उन्होंने मूलका आशय Traiteo Original से लिया। अर्थात् प्रो० गेरीनो ने मूल ग्रन्थ के अर्थ में मूल सूत्र का प्रयोग माना; क्योंकि इन ग्रन्थों पर नियुक्ति, चर्णि, टीका, वृत्ति प्रभृति अनेक प्रकार का विपुल व्याख्यात्मक साहित्य रचा गया है। टीका या व्याख्या-ग्रन्थों में उस ग्रन्थ को सर्वत्र 'मूल' कहा जाता है, जिसकी वे टीकाएँ या व्याख्याएँ होती हैं । जैन आगम वाङ्मय-सम्बन्धी ग्रन्थों में उत्तराध्ययन और दशवैकालिक पर अत्यधिक टीका-व्याख्यात्मक साहित्य रचा गया है, जिनमें प्रो० गेरीनो के अनुसार टीकाकारों ने मूल ग्रन्थ के अर्थ में 'मूल सूत्र' का प्रयोग किया हो । उसी परिपाटी का सम्भवतः यह परिणाम रहा हो कि इन्हें मूल सूत्र कहने की परम्परा प्रारम्भ हो गई हो। समीक्षा पाश्चात्य विद्वानों ने जो कल्पनाएँ की हैं, उनके पीछे किसी अपेक्षा का आधार है, पर, समीक्षा की कसौटी पर कसने पर वे सर्वाशतः खरी नहीं उतरतीं। प्रो० शर्पण्टियर ने भगवान् महावीर के मूल शब्दों के साथ इन्हें जोड़ते हुए जो समाधान उपस्थित किया, उसे उत्तराध्ययन के लिए तो एक अपेक्षा से संगत माना जा सकता है, पर, दशवैकालिक आदि के साथ उसकी बिलकुल संगति नहीं है। भगवान् महावीर के मूल या साक्षात् वचनों के आधार पर यदि मूल सूत्र नाम पड़ता, तो यह प्राचारांग, सत्रकृतांग जैसे महत्वपूर्ण अंग ग्रन्थों के साथ भी जुड़ता, जिनका भगवान् महावीर की देशना के साथ (गणधरों के माध्यम से) सीधा सम्बन्ध माना जाता है। पर वहाँ ऐसा नही है; अतः इस कल्पना में विहित मूल शब्द का वह प्राशय यथावत् रूप में घटित नहीं होता। डा. वाल्टर शुबिंग ने श्रमण-जीवन के प्रारम्भ में-मूल में पालनीय प्राचार-सम्बन्धी नियमों. परम्पराओं एवं विधि-विधानों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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