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________________ १२४ जैनागम दिग्दर्शक की प्राचार नामक तृतीय वस्तु के बीसवें प्राभूत के प्रायश्चित्तसम्बन्धी विवेचन के आधार पर इसकी रचना की गयी। पूर्व-ज्ञान की परम्परा उस समय अस्तोन्मुख थी; अतः प्रायश्चित्त-विधान जिन्हें प्रत्येक श्रमण-श्रमणी को भलीभांति जानना चाहिए, कहीं उच्छिन्न या लुप्त न हो जाए, एतदर्थ प्राचार्य भद्रबाहु ने व्यवहार सूत्र और कल्पसूत्र रचे । . कल्प पर भद्रवाहु कृत नियुक्ति भी है, जिसकी कर्तृकता असन्दिग्ध नहीं है। श्री संघदास गणी ने लघु भाष्य की रचना की। मलयगिरि ने उल्लेख किया है कि प्राचार्य भद्रबाह को नियुक्ति तथा श्री संघदास गणी का भाष्य; दोनों इस प्रकार परस्पर विमिश्रित जैसे हो गये हैं कि उन दोनों को पृथक्-पृथक् स्थापित करना असम्भव जैसा है। भाष्य पर प्राचार्य मलयगिरि ने विवरण की रचना की। पर, वह रचना पूर्ण नहीं थी। लगभग दो शताब्दियों के पश्चात् श्री क्षेमकीर्ति सूरि ने उसे पूरा किया। वृहत्कल्प पर वृहद् भाष्य भी है, पर, वह पूर्ण नहीं है, केवल तृतीय उद्देशक तक ही प्राप्य है। इस पर विशेष चूर्णि की भी रचना हुई। ६. पंचकप्प (पंच-कल्प) पंचकल्प सूत्र और पंचकल्प भाष्य; ये दो नाम प्रचलित हैं, जिनसे सामान्यतः ऐसा प्रतीत होता है कि सम्भवतः ये दो ग्रन्थ हों, पर, वास्तव में ऐसा नहीं है। नाम दो है, ग्रन्थ एक। श्री मलयगिरि और श्री क्षेमकीर्ति के अनुसार पंचकल्प-भाष्य वस्तुतः वृहत्कल्पभाष्य का ही एक अश है। इसकी वैसों ही स्थिति है, जैसी पिण्डनियुक्ति और अोघ-नियुक्ति की हैं। पिण्ड-नियुक्ति कोई मूलतः पृथक् ग्रन्थ नहीं है, वह दशवैकालिक-नियुक्ति का हो भाग है । उसी प्रकार अोघ-नियुक्ति भी स्वतन्त्र ग्रन्थ न हो कर आवश्यक-नियुक्ति का ही भाग है। विषय-विशेष से सम्बद्ध होने के कारण पाठकों की सुविधा की दृष्टि से उन्हें पृथक्-पृथक् कर दिया गया है । वृहत्कल्प-भाष्य का अंश होने के नाते पंचकल्प सूत्र या पंचकल्प-भाष्य श्री संघदास गणी द्वारा रचित ही माना जाना चाहिये। इस पर चूणि की भी रचना हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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