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अंग 79, वेदों के उपांग 79, उपवेदों की परि
कल्पना 80, जैन श्रुतोपांग 80, (1) उववाइय, प्रौपपातिक का अर्थ 81, (2) रायपसेणीप 82, (3) जीवाजीवाभिगम 86, दर्शन-पक्ष 86, व्याख्या
साहित्य 90, (4) पन्नवणा, नाम : अर्थ 91. रचना 91, रचना का
आधार : एक कल्पना 92, म्लेच्छ 93, आर्य 93,
व्याख्या-साहित्य 96, (5) सूरियपन्नत्ति 96, प्राभृत का अर्थ 96, व्याख्या
साहित्य 97, (6) जम्बूद्दीवपन्नत्ति 97, वक्षस्कार का तात्पर्य 98, (7) चंदपन्नत्ति, स्थानांग में उल्लेख 98, रहस्यमय :
एक समाधान 99, एक सम्भावना 100, संख्या . क्रम में भिन्नता 102, (8-12) पांच निरयावलियाँ 102. (8) निरयावलिया या कप्पिया 103, विषय
वस्तु 103, (9) कप्पवडंसिया 105, (10) पुल्फिया 106, तापस वर्णन 106, (11) पुप्फचूला 108, (12) वण्हिदसा 109 ।
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