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-पैंतालीस प्रागम
सम्पदा के भेदों का जो वर्णन किया गया है, वह श्रमण-संस्कृति से प्राप्यायित विराट व्यक्तित्व के स्वरूप को जानने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है ; अतः उन भेदों का यहां उल्लेख किया जा रहा है :
आचार-सम्पदा के चार भेदः १. संयम में ध्र व योगयुक्त होना, २. अहंकाररहित होना, ३. अनियतवृत्ति होना, ४. वृद्धस्वभावी (अचञ्चल स्वभावी) होना।
श्रुत-सम्पदा के चार भेदः १. बहुश्रु तता, २. परिचितश्र तता, ३. विचित्रश्रु तता, ४. घोषविशुद्धिकारकता।
__ शरीर-सम्पदा के चार भेद : १. प्रादेय-वचन, (ग्रहण करने योग्य वाणी), २. मधुर वचन, ३. अनिश्चित (प्रतिबन्ध रहित) वचन, ४. असन्दिग्ध वचन ।
वाचना-सम्पदा के चार भेद : १. विचारपूर्वक वाच्य विषय का उद्देश-निर्देश करना, २. विचारपूर्वक वाचना करना, ३. उपयुक्त विषय का ही विवेचन करना, ४. अर्थ का । सुनिश्चित निरूपण करना।
मति-सम्पदा के चार भेद : १. अवग्रह-मति-सम्पदा, २. ईहामति-सम्पदा, ३. अवाय-मति-सम्पदा, ४. धारणा-मति-सम्पदा ।
__ प्रयोग-सम्पदा के चार भेद : १. आत्म-ज्ञान पूर्वक वाद-प्रयोग, २. परिषद्-ज्ञान पूर्वक वाद-प्रयोग, ३. क्षेत्र-ज्ञान पूर्वक वाद-प्रयोग, ४. वस्तु-ज्ञान पूर्वक वाद-प्रयोग।
संग्रह-सम्पदा के चार भेद : १. वर्षाऋतु में सब मुनियों के निवास के लिए योग्य स्थान की परीक्षा करना, २. सब मनियों के लिये प्रातिहारिक पीठ-फलक-शय्या संस्तारक की व्यवस्था करना, ३. नियत समय पर प्रत्येक कार्य करना, ४. अपने से बड़ों की पूजाप्रतिष्ठा करना।
पंचम दशा में चित्त-समाधि-स्थान तथा उसके दश भेदों का वर्णन है । षष्ठ दशा में उपासक या श्रावक की दश प्रतिमाओं का 'निरूपण है । उस सन्दर्भ में सूत्रकार ने मिथ्यात्व-प्रसूत अक्रियावाद
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