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जैनागम दिग्दर्शन
__इस उद्देशक में प्राचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, नव दीक्षित शैक्ष (शिष्य), वार्धक्य आदि के कारण ग्लान (श्रमण), कुल, गण, संघ तथा सार्मिक; इन दश के वैयावृत्य-दैहिक सेवा आदि का भी उल्लेख है। रचयिता और व्याख्याकार ।
___ व्यवहार सूत्र के रचनाकार प्राचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। उन्हीं के नाम से इस पर नियुक्ति है । पर, सूत्रकार तथा नियुक्तिकार भद्रबाहु एक ही थे, यह विवादास्पद है। बहुत सम्भव है, सूत्र तथा नियुक्ति भिन्नकर्तृक हों; इस नाम से दो भिन्न प्राचार्यों की रचनाए हों। व्यवहार सूत्र पर भाष्य भी उपलब्ध है पर, नियुक्ति तथा भाष्य परस्पर मिश्रित से हो गये हैं। प्राचार्य मलयगिरि द्वारा भाष्य पर विवरण की रचना की गयी है। व्यवहार सूत्र पर चूणि और अवचरि की भी रचना हई। ऐसा अभिमत है कि इस पर बृहद् भाष्य भी था, पर, वह आज उपलब्ध नहीं है।
४. वसासुयक्खंघ (क्शा तस्कन्ध) यह छेद-सूत्रों में चौथा है। इसे दशा, प्राचार-दशा या दशाश्रत भी कहा जाता है। यह दश भागों में विभक्त है, जिन्हें दशा नाम से अभिहित किया गया है । पाठवां भाग अध्ययन नाम से संकेतित है।
प्रथम दशा में असमाधि के बीस स्थानों का वर्णन है। द्वितीय दशा में शबल के इक्कीस स्थानों का विवेचन है। शबल का अर्थ धब्बों वाला, चितकबरा या सदोष है। यहां शबल का प्रयोग दूषित पाचरण रूप धब्बों के अर्थ में है । तृतीय दशा में आशातना के तैंतीस प्रकार आदि का उल्लेख है। गरिण-सम्पदा
__ चतुर्थ दशा में गणी या प्राचार्य की पाठ सम्पदाओं का वर्णन है। वे पाठ सम्पदाएं इस प्रकार हैं : १. आचार-सम्पदा, २. श्रतसम्पदा, ३.. शरीर-सम्पदा, ४. वचन-सम्पदा, ५. वाचना-सम्पदा, ६. मति-सम्पदा, ७. प्रयोग-सम्पदा, ८. संग्रह-सम्पदा । प्रत्येक
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