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पैंतालीस प्रागम
११३ शिष्य-प्रशिष्यों का हित-साधन था। पंचकल्प चूर्णि में बताया गया है कि, प्राचार्य भद्रबाहु निशीथ सूत्र के रचयिता थे।
निशीथ सूत्र में बीस उद्देशक हैं। प्रत्येक उद्देशक भिन्न-भिन्न संख्यक सूत्रों से विभक्त हैं। व्याख्या साहित्य
__ निशीथ के सूत्रों पर नियुक्ति की रचना हुई । परम्परा से प्राचार्य भद्रबाहु नियुक्तिकार के रुप में प्रसिद्ध हैं। सूत्र एवं नियुक्ति के विश्लेषण हेतु संघदास गणी ने भाष्य की रचना की। सूत्र, नियुक्ति और भाष्य पर जिनदास महत्तर ने विशेष चूणि की रचना की, जो अत्यन्त सार-गभित है। प्रद्य म्न सूरि के शिष्य द्वारा इस पर प्रवचूरि की भी रचना की गई । इस पर बृहद् भाष्य भी रचा गया, पर, वह अाज प्राप्त नहीं है । सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा द्वारा निशीथ सूत्र का भाष्य एवं चूर्णि के साथ चार भागों में प्रकाशन हुया है, जिसका सम्पादन सुप्रसिद्ध विद्वान् उपाध्याय अमर मुनि जी तथा मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' द्वारा किया गया है।
२. महानिसीह (महानिशीथ) महानिशीथ को समग्र आर्हत्-प्रवचन का सार बताया गया है। पर, वस्तुतः जो मूल रूप में महानिशीथ था, वह यथावत् नहीं रह सका। कहा जाता है कि, इसके ग्रन्थ नष्ट-भ्रष्ट हो गये, उन्हें दीमक खागये। तत्पश्चात् प्राचार्य हरिभद्रसूरि ने उसका पुनः परिष्कार या संशोधन किया और उसे एक स्वरूप प्रदान किया। ऐसा माना जाता है कि वृद्धवादी, सिद्धसेन, यक्षसेन, देवगुप्त, यशोवर्धन, रविगुप्त, नेमिचन्द्र तथा जिनदास गणी प्रभृति प्राचार्यों ने उसे समाहृत किया। वह प्रवर्तित हुआ । साधारणतया निशीथ को लघु निशीथ
और इसे महानिशीथ कहा जाता है। पर, वास्तव में ऐसा घटित नहीं होता; क्योंकि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि महानिशीथ का वास्तविक रूप विद्यमान नहीं है। ____महानिशीथ छः अध्ययनों तथा दो चूलाओं में विभक्त है । प्रथम अध्ययन का नाम शल्योद्धरण है। इसमें पाप रूप शल्य की
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