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________________ पैतालीस आगम १११ छेद-सूत्रों के गम्भीर अध्ययन के बिना अपने श्रमण-समुदाय को ले कर ग्रामानुग्राम विहार नहीं कर सकता। निशीथ भाष्य में बतलाया गया है कि छेद-सूत्र अर्हत्-प्रवचन का रहस्य उद्बोधित करने वाले हैं, गुह्य-गोप्य हैं। वे अल्प सामर्थ्यवान् साधक को नहीं दिये जा सकते । पूर्ण पात्र ही उनके अधिकारी होते हैं । भाष्यकार का कहना है कि, जिस प्रकार अपरिपक्व घट में रखा गया जल घट को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार छेद-सूत्रों में सन्निहित सिद्धान्तों का रहस्य अनधिकारी साधक के नाश का कारण होता है। विनय-पिटक के सम्बन्ध में इसी प्रकार की गह्यता (गोपनीयता) की चर्चा प्राप्त होती है । मिलिन्द-प्रश्न में उल्लेख है कि विनयपिटक को छिपा कर रखा जाना चाहिए, जिससे अपयश न हो। कहने का आशय यह है कि प्रायश्चित्त प्रकरण में भिक्षुत्रों और भिक्षुणियों द्वारा प्रमाद या भोगाकांक्षा के उभर जाने के कारण सेवित उन चारित्रिक दोषों का भी वर्णन है, जिनकी विशुद्धि के लिये अमुक-अमुक प्रायश्चित्त करने होते हैं । जन-साधारण तक उस स्थिति का पहंचना लाभकर नहीं होता। जो वस्तुस्थिति के परिपूर्ण ज्ञाता नहीं होते, उनमें इससे श्रमण-श्रमणियों के प्रति अनेक प्रकार की विचिकित्सा तथा अश्रद्धा का उत्पन्न होना आशंकित है। सम्भवतः इसी कारण गोप्यता का संकेत किया गया प्रतीत होता है। १. निसीह (निशीथ), २. महानिसीह (महानिशीथ), ३. ववहार (व्यवहार), ४. दसासुयक्खंघ (दशाथ तस्कन्ध), ५. कप्प(कल्प), ६. पंच-कप्प अथवा जीयकप्प (पंच कल्प अथवा जीतकल्प) प्रभृति छेद-सूत्र माने जाते हैं। १. निसीह (निशीथ) शब्द का अर्थः निशीथ शब्द का अर्थ अन्धकार, अप्रकाश या रात्रि है। निशीथ भाष्य में इसका विश्लेषण करते हुए कहा गया है : "अप्रकाश या प्रन्धकार. लोक में 'निशीथ' शब्द से अभिहित होता है। जो अप्रकाशधर्म-रहस्यभूत या गोपनीय होता है, उसे भी निशीथ कहा गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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