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________________ पैतालील प्रागम १०६ १२. वहिदशा (वृष्णिदशा) नाम नन्दी-चूणि के अनुसार इस उपांग का पूरा नाम अन्धकवृष्णि दशा था। अन्धक शब्द काल-क्रम से लुप्त हो गया, केवल वृष्णिदशा बचा रहा । अब यह उपांग इसी नाम से प्रसिद्ध है। इसमें बारह अध्ययन हैं, जिनमें वृष्णिवंशीय बारह राजकुमारों का वर्णन है। उन्हीं राजकुमारों के नाम से वे अध्ययन हैं : १. निषधकुमार-अध्ययन, २. अनीककुमार-अध्ययन, ३. प्रह्वकुमार-अध्ययन, ४. वेधकुमारअध्ययन, ५. प्रगतिकुमार-अध्ययन, ६. मुक्तिकमार-अध्ययन, ७. दशरथकुमार-अध्ययन, ८. ढ़रथकुमार-अध्ययन. ६. महाधनुष्कुमारअध्ययन,१०. सप्रधनुष्कुमार-अध्ययन,११. दशधनुष्कुमार-अध्ययन तथा १२. शतधनुष्कुमार-अध्ययन। प्रथम अध्ययन में बलदेव और रेवती के पुत्र निषधकुमार के उत्पन्न होने, बड़े होने, श्रमणोपासक बनने तथा भगवान् अरिष्टनेमि से श्रमण-प्रव्रज्या ग्रहण करने आदि का वर्णन है । उसके विगत तथा भविष्यमाण दो भवों व अन्ततः (दूसरे भव के अन्त में) महाविदेह क्षेत्र में सिद्धत्व प्राप्त करने का वर्णन है। यद्यपि इस अध्ययन में वासुदेव कृष्ण का दर्शन प्रसंगोपात है, पर, वह महत्त्वपूर्ण है। वासुदेव कृष्ण के प्रभुत्व, वैभव, सैन्य, समृद्धि, गरिमा, सज्जा आदि का विस्तार से उल्लेख किया गया है। वष्णिवंश या यादव कुल के राज्य, यादववंश का वैपुल्य, आज के सौराष्ट्र के प्रागितिहासकालीन विवरण आदि अध्ययन की दृष्टि से इस उपांग का यह भाग उपयोगी है । अन्य ग्यारह अध्ययन केवल सूचना मात्र हैं। जैसे, इसी प्रकार (प्रथम की तरह) अवशिष्ट ग्यारह अध्ययन समझने चाहिए। पूर्व भव के नाम आदि संग्रहणी गाथा से ज्ञातव्य हैं। इन ग्यारह कुमारों का वर्णन निषधकुमार के वर्णन से न न्यून है और न अधिक । इस प्रकार वृष्णिदशा का समापन हुअा।" १. एवं सेसा वि एकारस अज्झयणा नेयव्वा । सगहणी पणुसारेण अहीणमहरित एक्कारससु वि । इति वहिदशा सम्मतं । -वृष्णिदशा सूत्र; अन्तिम अंश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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