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________________ जैनागम दिग्दर्शन ११. पुप्फचूला (पुष्पचूला) १. श्रीदेवी-अध्ययन, २. ह्रीदेवी-अध्ययन, ३.वृतिदेवी-अध्ययन, ४. कीर्तिदेवी-अध्ययन, ५. बुद्धिदेवी-अध्ययन, ६. लक्ष्मीदेवी-अध्ययन, ७ इलादेवी, अध्ययन, ८. सुरादेवी-अध्ययन, ६. रसदेवी-अध्ययन, १०. गन्धदेवो-अध्ययन, ये दश अध्ययन हैं। प्रथम अध्ययन में श्रीदेवी का वर्णन है। वह देवी दैवी-वैभव, समृद्धि तथा सज्जा के साथ अपने विमान द्वारा भगवान् के दर्शन के लिये पाती है। गणधर गौतम भगवान् महावीर से उसका पूर्व भव पूछते हैं । भगवान् उसे बतलाते हैं। इस प्रकार श्रीदेवी के पूर्व जन्म का कथानक उपस्थित किया जाता है। दूसरे से दशवें तक के अध्ययन केवल संकेत मात्र हैं, जो इस प्रकार हैं:-जिस प्रकार प्रथम अध्ययन में श्रीदेवी का वृत्तान्त वणित हना है, उसी प्रकार अवशिष्ट नौ देवीयों का समझ लें। उन देवियों के विमानों के नाम उनके अपने-अपने नामों के अनुसार हैं। सभी सौधर्म-कल्प में निवास करने वाली हैं । पूर्व भव के नगर, चैत्य, मातापिता, उनके अपने नाम संग्रहणी गाथा' के अनुसार हैं। अपने पूर्व भव में वे सभी भगवान् पार्श्व के सम्पर्क में आई। पुष्पचूला आर्या की शिष्याएँ हुई । सभी शरीर प्रादि का विशेष प्रक्षालन करती थीं, शौच-प्रधान थीं। सभी देवलोक से च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगी । इस प्रकार पुष्पचूला का समापन हुआ।" १. संग्रहणी गाथा, जिसमें पूर्व-भव के नगर, नाम, माता-पिता मादि का उल्लेख रहता है, विच्छिन्न प्रतीत होती है। २. एवं सेसाण वि गवण्हं भरिणयव्वं, सरिसणामा विमारणा, सोहम्मे कप्पे । पुन्वभवे नगरे चेइय पियमाईणं अप्पणो या नामइ जहा सगहणीए । सव्वा पासस्स अंतियं निक्खताओ, पुप्फचूलाणं सिसिणीयानो सरीरपाउसिणीयानो सच्चामो अणतर चइचइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिं ति। एवं खलु निक्खेवमो । पुप्फचूलामो सम्मत्तायो। -पुप्फबूला; अन्तिम अंश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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