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________________ १०६ जैनागम दिग्दर्शन दशवें अध्ययन तक की सूचना केवल प्राघी पंक्ति में यह कहते हुए कि उन्हें प्रथम अध्ययन की तरह समझ लेना चाहिए, दे दी गयी है । साथ-साथ यह भी सूचित किया गया है कि उनको माताएं उनके सदृश नामों की धारक थीं । अन्त में दशों कुमारों के दीक्षा पर्याय को भिन्न-भिन्न समयावधि तथा भिन्न-भिन्न देवलोक प्राप्त करने का उल्लेख करते हुए उपांग का परिसमापन कर दिया गया है । यह उपांग बहुत संक्षिप्त है । मगध भगवान् महावीर तथा बुद्ध के समय में पूर्व भारत का एक प्रसिद्ध एकतन्त्रीय ( एक राजा द्वारा शासित राज्य था । कल्पिका तथा कल्पावतंसिका प्रागितिहासकालीन समाज को स्थिति जानने की दृष्टि से उपयोगी हैं । १०. पुष्किया ( पुष्पिका ) प्रस्तुत उपांग में दश अध्ययन हैं, जिनमें ऐसे स्त्री-पुरुषों के कथानक हैं, जो धर्माराधना और तपःसाधना द्वारा स्वर्ग गये । अपने विमानों द्वारा वैभव, समृद्धि एवं सज्जापूर्वक भगवान् महावीर को वन्दन करने आये । तापस-वर्णन तीसरे अध्ययन में सोमिल ब्राह्मण के कथानक के सन्दर्भ में चालीस प्रकार के तापसों का वर्णन है । उनमें कुछ इस प्रकार हैं: (क) केवल एक कमण्डलु धारण करने वाले । (ख) केवल फलों पर निर्वाह करने वाले । (ग) एक बार जल में डुबकी लगा कर तत्काल बाहर निकलने वाले | (घ) बार-बार जल में डुबकी लगाने वाले । (ङ) जल में ही गले तक डूबे रहने वाले । (च) सभी वस्त्रों, पात्रों और देह को प्रक्षालित रखने वाले । (छ) शंख ध्वनि कर भोजन करने वाले । (ज) सदा खड़े रहने वाले । (झ) मृग- मांस के भक्षण करने वाले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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