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________________ पैंतालीस प्रागम १०५ तीसरे से दशों तक के अध्ययनों का वर्णन भी केवल इतनी-सी पंक्तियों में है : " शेष आठों अध्ययनों को प्रथम अध्ययन के सदृश समझना चाहिए । पुत्रों और माताओं के नाम एक जैसे हैं । निरयावलिका सूत्र समाप्त होता है ।" " ६. कप्पवडंसिया (कल्पावतंसिका) कल्पावतंस का अर्थ विमानवासी देव होता है । कल्पावतंसिका शब्द उसी से निष्पन्न हुआ है । इस उपांग में दश अध्ययन हैं, जिनमें राजा कोणिक के दश पौत्रों के संक्षिप्त कथानक हैं, जो स्वर्गगामी हुए । दश अध्ययनों के नाम चरित नायक कुमारों के नामों के अनुरूप हैं, जैसे, १. पद्मकुमार-अध्ययन, २. महापद्मकुमार अध्ययन, ३ भद्रकुमार- अध्ययन, ४. सुभद्रकुमार अध्ययन, ५. पद्मभद्रकुमार · अध्ययन ६. पद्मसेनकुमार-अध्ययन, ७ पद्मगुल्मकुमार अध्ययन, ८. नलिनीगुल्मकुमार - अध्ययन, E, आनन्दकुमार अध्ययन तथा १० नन्दकुमार-अध्ययन | दशों कुमार निरयावलिका (कल्पिका) में वर्णित राजा श्रेणिक के कालकुमार आदि दशों पुत्रों के क्रमशः पुत्र थे । प्रथम अध्ययन में कालकुमार के पुत्र पद्मकुमार के जन्म, दीक्षा ग्रहण, स्वर्ग-गमन तथा अन्ततः महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले कर सिद्धत्व प्राप्त करने तक का संक्षेप में लगभग चार-पांच पृष्ठों में वर्णन है । दूसरे अध्ययन में सुकालकुमार के पुत्र महापद्म का संक्षिप्ततम विवरण है । केवल उसके जन्म के वृत्तान्त का पांच-सात पंक्तियों में सूचन कर ग्रागे प्रथम अध्ययन की तरह समझ लेने का संकेत किया गया है । तीसरे अध्ययन से | पूर्व पृष्ठ का शेष ] होत्था सुकुमाले । ततेगं से सुकाले कुमारे प्रन्नयाकयाइ तिहि दंतिसहस्सेहि जहा काले कुमारे निरविसेसं तहेव महादिदेवा से अंते करेहिंति । - निरयावलिया; द्वितीय अध्ययन, पृ० ६३-६४ १. एवं सेसा वि भट्ठ प्रज्भयरणा, नायव्वा पढमं सरिसा, गवरं माताश्रो सरिसा णामा । गिरयावलीयाओ सम्मत्ताम्रो । — निरयावलिया; समाप्ति-प्रसंग | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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