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________________ १०४ जैनागम दिग्दर्शन दोहद, अभयकुमार द्वारा बुद्धिमत्तापूर्वक उसकी पूर्ति, कूणिक का जन्म माता द्वारा उसे उत्कुरडी (घूरे) पर फिकवाया जाना, श्रेणिक द्वारा उसे वापिस लाया जाना, स्नेह पूर्वक पाला जाना, बड़े होने पर कूणिक द्वारा पिता श्रेणिक को बन्दीगृह में डाल राज-सिंहासन हथियाया जाना, श्रेणिक द्वारा दुःखातिरेक से आत्म-हत्या किया जाना, अपने छोटे भाई वेहल्लकुमार के कारण सेचनक हस्ती आदि न लौटाये जाने से वैशाली गणराज्य के अधिपति चेटक पर कूणिक द्वारा चढ़ाई किया जाना आदि का इस सन्दर्भ में वर्णन आता है । रथमूसल तथा महाशिलाकंटक संग्राम का वहां उल्लेख मात्र है। उस सम्बन्ध में व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का संकेत कर दिया गया है। दूसरे अध्ययन को सामग्री केवल इतनी-सी है- “उस समय चम्पा नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। कूणिक राजा था और पद्मावती उसकी रानी थी। वहाँ चम्पा नगरी में पहले राजा श्रेणिक की भार्या, कूणिक की कनिष्ठा माता सुकुमारांगी सुकाली रानी थी। सुकाली देवी के सुकुमारांग सुकालकुमार हुा । तीन सहस्र हाथियों को लिए युद्ध में गया हुअा कालकुमार जिस प्रकार मारा गया, उसी तरह का समग्र वृत्तान्त सुकालकुमार का भी है। अन्ततः सुकालकुमार भी महाविदेह क्षेत्र में संसार का अन्त करेगा-सिद्ध होगा ।"१ दूसरे अध्ययन का वृत्तान्त यहीं समाप्त हो जाता है ।। १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं रणयरी होत्या । पुण्णभद्दे चेइए, कूरिणय राया, पउमावई देवी । तत्थणं चंपानयरीए सेणियस्स रण्णो अज्ज कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली नाम देवी होत्था सुकुमाला । . तीसेणं सुकालीए देवीए पुत्ते सुकाले नामे कुमारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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