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'पैंतालीस पागम
पहले कभी सम्भवतः ये पांचों एक ही निरयावलिका सूत्र के रूप में रहे हों। पर, जब अंगों के समकक्ष उपांग भी बारह की संख्या में प्रतिष्ठित किये जाने अपेक्षित माने गये, तो उन्हे पांच उपांगों के रूप में पृथक-पृथक् मानने की परम्परा चल पड़ी।। ८. निरयावलिया (निरयावलिका) या कप्पिया (कल्पिका)
प्रस्तुत उपांग दश अध्ययनों में विभक्त है, जिनके नाम इस प्रकार हैं : १, कालकुमार अध्ययन, २. सुकालकुमार अध्ययन, ३. महाकालकुमार अध्ययन, ४. कृष्णकुमार अध्ययन, ५. सकृष्णकमार अध्ययन, ६. महाकृष्णकुमार अध्ययन, ७. वीरकृष्णकुमार अध्ययन, ८. रामकृष्णकुमार अध्ययन, ६. प्रियसेन कृष्णकुमार अध्ययन तथा १०. महासेन कृष्णकुमार अध्ययन । जिन कुमारों के नाम से ये अध्ययन हैं, वे मगधराज श्रेणिक के पुत्र तथा कूणिक (अजातशत्रु) के भाई थे, जो वैशाली गणराज्य के अधिनायक चेटक और कूणिक के बीच हुए संग्राम में चेटक के एक-एक बाण से क्रमशः मारे गये। विषय-वस्तु
प्रथम अध्ययन कृष्णकुमार के प्रसंग से प्रारम्भ होता है। उसकी माता कालीदेवी कूणिक के साथ युद्ध में गये हुये अपने पुत्र के विषय में भगवान महावीर से प्रश्न पूछती है। भगवान् से यह जानकर कि वह युद्ध में चेटक के कारण से मारा गया है, वह बहुत दुःखित और शोकान्वित हो जाती है । कुछ यथावस्थ होने पर वापिस लौट जाती है। गणधर गौतम तब भगवान महावीर से कालकमार के अग्रिम भव और विगत भव के सम्बन्ध में प्रश्न करते हैं। उसका भगवान् महावीर जो उत्तर देते हैं, उस सन्दर्भ में कूणिक-अजातशत्रु के जीवन का इतिवृत्त विस्तत रूप में उपस्थित हो जाता है। श्रेणिक की गर्भवती रानी चेल्लणा का पति के कलेजे के मांस के तले हुए शोलों तथा मदिरा का प्रसन्नतापूर्वक प्रास्वाद लेने का निघृण १. मूल पाठ में 'सोलेहि' शब्द पाया है, जिसका संस्कृत रूप 'शोलेः'
होगा । शूल या काँटे से तले जाने के कारण उस प्रकार के मांस के टुकड़ों को शील कहा जाता होगा।
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