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'पैतालीस प्रागम
जात्यार्य-अंबष्ठ, कलिंद, विदेह, वेदग, हरित, चुचुण (या तुतुण)।
कुलार्य-उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव ।
कार्य-दौष्यिक ( कपड़े बेचने वाले ), सौत्रिक ( सूत बेचने वाले), कार्पासिक (कपास बेचने वाले), सूत्रवैकालिक, भांडवैकालिक, कोलालिय (कुम्हार), नरवाहनिक (पालकी आदि उठाने वाले)।
शिल्पार्य-तुन्नाग (रफू करने वाले), तन्तुवाय (बुनने वाले), ‘पटकार (पटवा), देयड़ा (हतिकार, मशक बनाने वाले), काष्ठपादुकाकार (लकड़ी की पादुका बनाने वाले), मंजुपादुकाकार, छत्रकार, वज्झार (वाहन करने वाले), पोत्थकार (पूछ के बालों से झाङ आदि बेचने वाले, अथवा मिट्टी के पुतले बनाने वाले), लेप्यकार, चित्रकार, शंखकार, दंतकार, भांडकार, जिज्झगार, सेल्लगार (भाला बनाने वाले), कोडिगार (कोड़ियों की माला बनाने वाले)।
भाषार्य-अर्धमागधी भाषा बोलने वाले।
ब्राह्मी लिपी लिखने के प्रकार-ब्राह्मी, यवनानी, दोसापुरिया, खरोष्ट्री, पुक्खरसारिया, भोगवती, पहराइया, अतक्खरिया, (अंताक्षरी), अक्खरपुट्ठिया, कैनयिकी, निह्नविकी, अंकलिपि, गणितलिपि, अादर्श लिपि, माहेश्वरी, दोमिलिपि (द्राविड़ी), पौलिन्दी।
ज्ञानार्य पांच प्रकार के हैं—आभिनिबोधिक, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान ।
दर्शनार्य–सरागदर्शन, वीतराग दर्शन । सराग दर्शननिसर्ग रुचि, उपदेश रुचि, प्राज्ञा रुचि, सूत्र रुचि, बीज रुचि, अभिगम रुचि, विस्तार रुचि, क्रिया रुचि, संक्षेप रुचि, धर्म रुचि । वीतराग दर्शन-उपशान्त कषाय, क्षीण कषाय । . चारित्रार्य-सराग चारित्र, वीतराग चारित्र । सराग चारित्रसूक्ष्मसम्पराय, बादर सम्पराय । वीतराग चारित्र-उपशान्त कषाय, क्षीण कषाय । अथवा चारित्रार्य पांच होते हैं--सामायिक, छेदोपस्थान, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय, यथाख्यात चारित्र ।
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