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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कर विहार करता है, नासिका को संयम रहित रखने के कारण भिक्षुओ ! जो उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न हो सकते हैं, नासिका के संयम के कारण उस भिक्षु के वे उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न नहीं होते । तत्व “भिक्षुओ ! जो ज्ञानपूर्वक अपने रसनेन्द्रिय का -जिह्वा का संयम करता है, वैसा कर विहार करता है, जिह्वा, को संयम रहित रखने के कारण भिक्षुओ ! जो उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न हो सकते हैं, जिह्वा के संयम के कारण उस भिक्षु के वे उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न नहीं होते । "भिक्षुओ ! जो ज्ञानपूर्वक स्पर्शेन्द्रिय का संयम करता है, वैसा कर विहार करता है, स्पर्शेन्द्रिय को संयम रहित रखने के कारण भिक्षुओ ! जो उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न हो सकते हैं, स्पर्शेन्द्रिय के संयम के कारण उस भिक्षु के वे उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न नहीं होते । ३६ “भिक्षुओ ! जो ज्ञानपूर्वक अपने मन- इन्द्रिय का संयम करता है, वैसा कर विहार करता है, मन - इन्द्रिय को संयमरहित रखने के कारण भिक्षुओ ! जो उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न हो सकते हैं, मन- इन्द्रिय के संयम के कारण उस भिक्षु के वे उत्तापकारी आस्रव उत्पन्न नहीं होते | भिक्षुओ ! ये वे आस्रव हैं, जो संयम द्वारा विनष्ट किये जा सकते हैं ।" " लेश्या: श्रभिजाति लेश्या जैन-परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द है । यह आभ्यन्तर अध्यवसायों या परिणामों से सम्बद्ध है । इसका तात्पर्य पौद्गलिक किंवा भौतिक पदार्थों के संपर्क से उत्पन्न होनेवाले आत्मपरिणाम हैं, जो प्रशस्त एवं अप्रशस्त दोनों प्रकार के होते हैं । लेश्या तत्त्व का जैन दर्शन में बड़ा विशद विवेचन हुआ है। शुभ-अशुभ परिणाम- प्रसूत लेश्याएँ छः भागों में विभक्त हैं । बौद्ध-शास्त्रों में लेश्या के समकक्ष अभिजाति शब्द का प्रयोग हुआ है, जो किन्हीं अपेक्षाओं से वैसे ही अर्थ में प्रयुक्त है । जिस प्रकार, जैन - शास्त्रों में छः लेश्याएँ मानी गई हैं, उसी प्रकार बौद्ध शास्त्रों में भी छः अभिजातियाँ व्याख्यात हुई हैं। लेश्याएँ छ: हैं - १. कृष्ण - लेश्या, २. नील- लेश्या, ३. कापोत- लेश्या, ४. तेजोलेश्या, ५. पद्मलेश्या तथा ६. शुक्ल - लेश्या । १. अंगुत्तरनिकाय, नि० ६, पृष्ठ ८६ २. स्थाननांग सूत्र, स्थान ६, सूत्र ४७.४८ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि के जीवों में छः लेश्याएँ प्राप्त होती हैं - १. कृष्ण-लेश्या, २. नील- लेश्या, ३. कापोल- लेश्या, ४. तेजोलेश्या, ५. पद्म - लेश्या एवं ६. शुक्ल - लेश्या । २ आर्यं सुधर्मा ने जम्बू से कहा - "आयुष्मन् जम्बू ! मैं लेश्याओं का वर्णन करूंगा, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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