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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
सुनो-लेश्याएँ क्रमशः १. कृष्ण-लेश्या, २. नील-लेश्या, ३. कापोत-लेश्या ४. तेजो-लेश्या, ५. पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या के रूप में ६. प्रकार की हैं।'
प्रशस्त लेश्या तथा अप्रशस्त लेश्या के रूप में उनके दो भेद हैंकृष्ण लेश्या : अप्रशस्त
पाँच आस्रवों में प्रवृत्त, तीन गुप्तियों से अगुप्त-मन, वचन तथा शरीर द्वारा असंयत, छः काम में अविरत-सब प्रकार के जीवों की हिंसा से अनिवृत्त, तीव्रारंभपरिणत-तीव्र भावों या परिणामों द्वारा आरम्भ-समारंभ-हिसा आदि करने में उद्यत, क्षुद्र-निम्न कर्म-युक्त, साहसिक-अचिन्त्यकारी, बिना सोचे-विचारे काम करनेवाला, निर्दय तथा नृशंस परिणाम युक्त, अजितेन्द्रिय-इन्द्रियों को नियन्त्रित न रखने वालाऐसा विपरीत भावों एवं कर्मों से युक्त पुरुष कृष्ण-लेश्या-परिणत होता है। नील-लेश्या : अप्रशस्त
ईर्ष्यालु, असहिष्णु, तपोविहीन, विद्याविहीन, मायावी, लज्जाशून्य, विषयासक्त, प्रद्वेषी, प्रमत्त, रस-लोलुप, सुखैषी, हिंसा से अविरत पुरुष नील-लेश्या के परिणामों से युक्त होता है। कापोत-लेश्या: अप्रशस्त
वक्रभाषी-टेढ़े वचन बोलनेवाला, वक्राचारी-विपरीत आचरण करने वाला, मायाचारी, अनृजु-सरलता-रहित स्वदोषगोपी, छलप्रपंचयुक्त, मिथ्यादृष्टि, अनार्य, मर्मभेदक वचनभाषी, चौर्यरत एवं मत्सरता-युक्त पुरुष कापोत-लेश्या परिणत होता है। तेजो लेश्या : प्रशस्त
नम्रतायुक्त, चंचलतारहित, अमायी-प्रवञ्चनारहित, कुतूहलरहित, अति विनीत, दान्त–इन्द्रियदमनशील, स्वाध्याय आदि सत्कार्यों में संलग्न, उपधान आदि तपश्चरण में निरत, धर्मप्रिय, धर्म में दृढ़, पाप-भीरु, समस्त प्राणियों का हितकांक्षी पुरुष तेजोलेश्या के परिणामों से युक्त होता है। पद्मलेश्या : प्रशस्त
प्रतनु-क्रोध-मान--अल्पक्रोध, अल्पमानयुक्त, प्रशान्त चित्त, दमितात्मा, स्वाध्याय में, उपधानादि तप में संलग्न, परिमितभाषी, उपशान्त, जितेन्द्रिय पुरुष पद्म-लेश्या के परिणामों से युक्त होता है । शुक्ल-लेश्या:प्रशस्त
___ जो पुरुष आर्तध्यान एवं रौद्रध्यान का परिवर्जन कर धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान का अभ्यास करता है, प्रशान्तचित्त, दमितात्मा समितियुक्त, गुप्तियुक्त-मानसिक, वाचिक, कायिक प्रवृत्तियों में संयत, स्वल्परागयुक्त अथवा रागरहित होता है, वह शुक्ल-लेश्यापरिणत होता है।
१. उत्तराध्ययन सूत्र ३४.१,३. २. उत्तराध्ययन सूत्र ३४.१६,१७-३२
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