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________________ आगम और त्रिपिटक : एक [खण्ड : ३ आस्रव : संवर __आस्रव श्रमण-परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द है । यह कर्मागम का द्वार है । राग, द्वेष आदि असद्वृत्तियों का मूल उद्गम या स्रोत है। साधक को चाहिए, वह सम्बर-संयमन द्वारा इस पर रोक लगाए । ऐसा कर वह कर्मों के दुरूह बन्धन में नहीं बँधेगा, कष्टमुक्त रहेगा । जैन एवं बौद्ध शास्त्रों में इस सम्बन्ध में स्थान-स्थान पर बड़ा विशद प्रकाश डाला गया है। यद्यपि दोनों की चिन्तन-विधाएँ अपनी-अपनी हैं, किन्तु, वे मूलगामी सादृश्य से सर्वथा पृथक् नहीं हैं। जम्बू ! मैं धर्मदेशना का वह सार कहूंगा, जो आस्रव एवं संवर का निश्चय कराने में समर्थ हैं, जिसे महर्षियों-तीथंकरों, गणधरों आदि ने सुभाषित किया है-सम्यक् 'आख्यात किया है। इससे तुम उनका सही रहस्य समझ सकोगे। तीर्थंकरों मे जगत् में आस्रव के पांच प्रकार आस्रव प्रज्ञप्त किये हैं-बतलाये हैंहिंसा, मृषा, अदत्त अब्रह्म तथा परिग्रह ।' आस्रव-द्वार पांच बतलाये गये हैं--मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग। संवर-द्वार पाँच कहे गये हैं-सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषायिता तथा अयोगिता आस्रव के छः प्रकार आख्यात हुए हैं-श्रोतेन्द्रिय-असंवर, चक्षु इन्द्रिय असंवर, घ्राणेन्द्रिय-असंवर, रसनेन्द्रिय-असंवर, स्पर्शनेन्द्रिय-असंवर तथा नोइन्द्रिय-असंवर।। . असंवर के आठ प्रकार कहे गये हैं-श्रोतेन्द्रिय-असंवर, चक्षु इन्द्रिय-असंवर, घ्राणेन्द्रिय-असंवर, रसनेन्द्रिय असंवर, स्पर्शनेन्द्रिय-असंवर, मन-असंवर, वचन-असंवर एवं काय-असंवर। संवर के आठ प्रकार बतलाये गये हैं-श्रोतेन्द्रिय-संवर, चक्षु इन्द्रिय संवर, घ्राणेन्द्रिय-संवर रसनेन्द्रिय-संवर, स्पर्शनेन्द्रिय संवर, मन-संवर वचन-संवर तथा कायसंवर ६ ___ असंवर के दस भेद बतलाये गये हैं-श्रोतेन्द्रिय-असंवर, चक्षु इन्द्रिय-असंवर, घ्राणेन्द्रिय-असंवर, रसनेन्द्रिय-असंवर, स्पर्शनेन्द्रिय-असंवर, मन-असंवर, वचन-असंवर, काय-असंवर, उपकरण-असंवर तथा सूची-कुशाग्रं-असंवर।" १. प्रश्नव्याकरण सूत्र, आस्रव द्वार,प्रथम अध्ययन १.२ २. स्थानांग सूत्र, स्थान ५, सूत्र १०६ ३. स्थानांग सूत्र, स्थान ५, सूत्र ११० ४. स्थानांग सूत्र, स्थान ६, सूत्र १६ ५. स्थानांग सूत्र, स्थान ८, सूत्र १२ ६. स्थानांग सूत्र, स्थान ८, सूत्र ११ ७. स्थानांग सूत्र, स्थान १०, सूत्र ११ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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