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आगम और त्रिपिटक : एक भनुशीलन
[खण्ड : ३ सुख-दुःखात्मक विपाक या फल-निष्पत्ति का प्रतिलेखन-पर्यालोचन करो-उस पर विशेष रूप से चिन्तन करो। विध-इन तीन को-तीन तत्त्वों को जानने वाला या अतिविधविशिष्ट ज्ञान-युक्त पुरुष सम्यक्त्व-दर्शन-युक्त होता है-सम्यक्-दृष्टि होता है। सम्यक्-दृष्टि पापाचरण नहीं करता है।'
सम्यक्-वृष्टि
एक समय का प्रसंग है, भगवान् तथागत श्रावस्ती में अनाथपिडिक के जेतवन नामक बगीचे में विराजित थे। वहाँ भगवान के प्रमुख अंतेवासी सारिपुत्त ने भिक्षों को संबोधित कर कहा-आयुष्मान भिक्षुओ! क्या जानते हो? आर्य-श्रावक--आर्य-धर्म का अनगामी गही सम्यकदष्टि कैसे होता है? उसकी दृष्टि सम्यक्- यथार्थ, सीधी या खरी कसे होती है ? यह धर्म में अत्यन्त श्रद्धानिष्ठ कैसे होता है ? वह सद्धर्म को प्राप्त कैसे करता हैधर्मा-चरणशील कैसे बनता है ?"
भिक्षों ने कहा-"आयुष्मान् सारिपुत्त ! इस सम्बन्ध में जानने हेतु हमलोग दूर से आपके पास आते हैं, आप ही इसे स्पष्ट करें, इसका आशय प्रकट करें। मिक्ष आपसे श्रवण करेंगे, धारण करेंगे।"
सारिपुत्त ने उन भिक्षुषों को उत्तर दिया-"आयुष्मान् भिक्षुओ ! मैं उस सम्बन्ध में कहता हूँ, श्रवण करें, मन में अवधारणा करें।"
भिक्षु बोले-"आयुष्मान ! जैसा आप कहते हैं, हम करेंगे।"
सारिपुत्त ने कहा-"आयुष्मान् भिक्षुओ !जब आर्य-श्रावक अकुशल-अपुण्य, पाप, असत् कार्य या बुराई को जानता है, अकुशल-मूल को जानता है, वह कुशल-पुण्य, सत्कार्य या भलाई को जानता है, कुशल-मूल को जानता है, तब आर्य-श्रावक सम्यकदृष्टि होती है। उसकी दृष्टि सम्यक्-यथार्थ सीधी या खरी होती है। वह धर्म में अत्यन्त श्रद्धानिष्ठ होता है, वह धर्मानुगत होता है।"
___ आयुष्मान् महाकोट्ठित का आयुष्मान् सारिपुत्त से प्रश्न था-"आयुष्मान् ! सम्यक्दृष्टि के ग्रहण में-सम्यक्-दृष्टि में प्राप्त करने में कितने प्रत्यय-हेतु या कारण हैं ?"
सारिपुत्त ने उत्तर दिया-"आयुष्मान् ! सम्यक्दृष्टि प्राप्त करने के दो प्रत्यय हैंअन्य-कोष-दूसरों का उपदेश सुनकर, दूसरों से प्रेरणा प्राप्त कर उसे स्वायत्त किया जाता है तथा योनिशः मनाकार-स्वभावतः, उसके मूल पर मनन-चिन्तन द्वारा उसे प्राप्त किया जाता है। यों वह दो प्रकार से प्राप्त होती है।
महा कोठित ने सारिपुत्त से पूछा-"आयुष्मन् ! सम्यक्दृष्टि किन अंगों से, विशेषताओं से समायुक्त होने पर तोविमुक्तिफलवती, घेताविमुक्तिफलमाहात्म्यवती, प्रज्ञाविमुक्तिफलवती तथा प्रज्ञाविमुक्तिफलमाहात्म्यवती होती है ?"
१. आचारांग १.३.२.४ २. मज्झिमनिकाय १.१.६, सामादिट्टि सुत्तन्त ३. मज्झिम निकाय, महावेदल्ल सुत्तन्त १.५.३
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