________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
तत्त्व करता है।'
जब मनुष्य मर जाता है तो विषयषी- सांसारिक सुखों के अभिलाषी उपके जातीय जन, पारिवारिक वृद्ध आघात-कृत्य-दाह-संस्कार आदि मृत्यकोचित अन्तिम कर्म कर उसका धन हड़प लेते हैं। अशुभ कृत्यों द्वारा धन अर्जित करनेवाला वह मृत पुरुष अपने पाप-कर्मों के परिणामस्वरूप उत्पन्न दुःख कष्ट खुद ही अकेला भोगता
किसी पुरुष का कष्ट न उसके जातीय जन और न मित्रवृन्द ही बंटा सकते हैं तथा न उसके पुत्र व न बन्धु-बान्धव उसका हिस्सा ले सकते हैं। अपने अशुभ कर्मों के कारण उत्पन्न दु:ख मनुष्य को स्वयं ही झेलना होता है। कर्म वस्तुतः एकमात्र कर्ता का ही अनुगमन-अनुसरण करते हैं।
लोहे का मल-काट, जिससे-लोहे से उत्पन्न होता है, उसी को खा जाता हैउसकी दुर्गति करता है—उसे क्षत-विक्षत एवं नष्ट कर डालता है, उसी प्रकार चंचलचेता पुरुष को उसके अपने असत् कर्म ही उसे दुर्गति में ले जाते हैं।
. रथ की अणी द्वारा जुड़े हुए उसके पहिए चलते हुए रथ के साथ-साथ चलते जाते हैं, वैसे ही कर्म अणी द्वारा रथ से जुड़े पहिए की ज्यों मनुष्य के साथ संश्लिष्ट रहते हैं, उसके साथ-साथ चलते जाते हैं ।
बंधना, छूटना अपने हाथ
जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष या निर्वाण है। वासनानुरत कर्मबद्ध प्राणी जब वास
१. सकम्मुणा विप्परियासुवेति ।
-सूत्रकतांग १.७.११ २. भघातकिच्चमाधातुं, नायओ विसएसिणो। अन्ने हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहिं कच्चति ।।
-सूत्रकतांग सूत्र १.६.४ ३. न तस्स दुक्खं विभयंति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं , कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ।।
--उत्तराध्ययन सूत्र १३.२३ ४. अयसा, व मलं समुट्टितं , तट्ठाय तमेव खादति । एवं अतिधोनचारिनं, सानि कम्मानि नयन्ति दुग्गति ।।
-धम्मपद १८.६ ५. कम्मनिबंधना सत्ता रथस्साणीव यायतो।
--सुत्तनिपात ३५.६१
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org