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बागम और त्रिपिटक एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
एक ओर अवस्थित ब्राह्मणों ने भगवान् से जिज्ञासा की — “गौतम ! कई प्राणी देहत्याग कर अपाय— नरक में निपतित होते हैं, नरक में पैदा होते हैं । कई प्राणी देह त्याग कर सुगति में जाते हैं, स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। उनका क्या प्रत्यय - - हेतु या कारण
है ?"
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भगवान् तथागत ने कहा- "गृहपतियो ! अधर्म का आचरण करने से प्राणी नरक में निपतित होते हैं, नरक में गिरते हैं। धर्म का आचरण करने से वे सुगति प्राप्त करते हैं, स्वर्ग में जन्म लेते हैं । "
ब्राह्मणों ने कहा--"गौतम ! आपने विस्तार से बताया है, उसका तात्पर्य हम नहीं समझ पा रहे हैं। बतलाएँ, जिससे हम आप द्वारा संक्षेप में कही गई सकें !"
नहीं बताया । संक्षेप में आपने जो आप हमें विस्तारपूर्वक इस प्रकार बात का विस्तृत अर्थ, आशय समझ
भगवान् बोले- गृहपतियो ! कायिक अधर्माचरण से विषम आचरण से, वाचिक अधर्माचरण से तथा मानसिक अधर्माचरण से प्राणी देह त्याग के पश्चात् नरक में गिरते हैं । .
“गृहपतियो ! कायिक अधर्माचरण तीन प्रकार का होता है— एक पुरुष हिंसा में रत रहता है, क्रूर होता है, रक्तरंजित हाथों बाला होता है, सदा मारकाट में लगा रहता है, प्राणियों के प्रति दया शून्य होता है - ऐसा करना पहले प्रकार का अधर्माचरण है । "कोई पुरुष अदिन्नादायी- - अदत्तादानी - दूसरे के बिना दिये उसकी वस्तु ले लेता है, ग्राम में या वन में राजा किसी का धन या सामान ले लेता है, चोरी करता है - ऐसा करना दूसरे प्रकार का अधर्माचरण है ।
"कोई पुरुष काम में -- स्त्री सेवन में मिथ्याचारी - दुराचारी या व्यभिचारी होता है, उन स्त्रियों का सेवन करता है, जो माता के संरक्षण में हैं, पिता के संरक्षण में हैं, मातापिता के संरक्षण में हैं, जातीय जनों के संरक्षण में हैं, बहिन के संरक्षण में हैं, गोत्रीय जनों के संरक्षण में हैं, धर्म के संरक्षण में हैं, पतियुक्त हैं, विवाहित हैं, ऐसा करना तीसरे प्रकार a ranaरण है ।
"गृहपतियो ! वाचिक अधर्माचरण चार प्रकार का होता है-- कोई पुरुष असत्यवादी होता है। किसी सभा में, परिषद् में, जातीय जनों के बीच, पंचायत के बीच, राजा के दरबार में, न्यायालय में साक्षी गवाही देने के लिए वह बुलाया जाता है, कहा जाता हैजैसा तुम जानते हो, कहां। पूछे गये विषय में वह कुछ नहीं जानता और कहता है कि मैं जानता हूँ। वह झूठी गवाही देता है। किसी विषय में जानते हुए भी दहना कह देता है कि मैं यह नहीं जानता । किसी विषय में कुछ देखे बिना भी वह कह देता है कि मैंने ऐसा देखा है। किसी विषय में देखने पर भी वह कह देता है कि मैंने यह नहीं देखा । इस तरह वह अपने स्वार्थ से, दूसरे के स्वार्थं से या योग्य पदार्थों के लोभ से जान-बूझकर असत्य भाषण करता है। यह पहले प्रकार का वाचिक अधर्माचरण है ।
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"कोई पुरुष पिधुन --- चुगली करने वाला होता है । लोगों में परस्पर वैमनस्य उत्पन्न करने के लिए इधर-उधर की, एक-दूसरे की सच-झूठ बात कहता है । यहाँ सुनी बात वहाँ कहता है, वहाँ सुनी बात यहाँ कहता है । इस प्रकार वह जिन लोगों में आपस में मेलजोल
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