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७०६ आगम और त्रिपिटक : एक अनशीलन
[खण्ड :३ विदेह देश के राजा ने यह संवाद सुना। गांधार और विदेह राज्य में मैत्री-सम्बन्ध था। अपने मित्र राजा के भिक्षु बनने की बात से विदेह नरेश को भी विराग हुआ। वह भिक्षु बन कर राज-महल से निकल पड़ा। दोनों राजर्षि साधना में लीन हो गए । अपनेपराये का भेद मिटने लगा। ध्यान, आत्म-चिन्तन और कषाय-विजिगीषा में ही वे रमने
लगे।
दोनों का मिलन
आकाश में भ्रमण करते हुए दो ग्रह जैसे एक राशि पर आ जाते हैं, दोनों राजर्षि भी आकस्मिक रूप से एक-दूसरे से मिल गए। समान चर्या के कारण दोनों में सामीप्य हो गया। साथ-साथ परिभ्रमण करने लगे। एक-दूसरे के अतीत को जानने की जिज्ञासा किसी के मन में नहीं हुई। दोनों ही आत्मा के अन्तर आलोक में भ्रमण करते थे। एक दिन दोनों ही राषि एक घने वक्ष की छाया में शान्त विहार कर रहे थे। रात हो गई। आकाश में चन्द्रमा उग आया। समग्रपृथ्वी चांदनी से झलाझल भर गई। रात पूर्णिमा की थी। उस दिन भी चन्द्रग्रहण हआ। गांधार के राजर्षि को अपने अभिनिष्क्रमण की बात याद आई। गांधार के राजर्षि ने कहा-'मेरे अभिनिष्क्रमण में यह चन्द्र-ग्रहण ही निमित्त बना था।"
विदेह के राजर्षि ने कहा-"क्या आप ही गांधार के राजा थे?"
उत्तर मिला- 'मैं ही गांधार-नरेश था । आप भी तो बतायें, भिक्षु-पर्याय से पूर्व आप क्या थे?"
उत्तर मिला-"मैं विदेह देश का राजा था और आपके घटना-प्रसंग को सुनकर भिक्ष बन गया। हम दोनों मित्र राजा थे। हम परस्पर कभी मिले नहीं थे, पर, हमारा परम्परागत सम्बन्ध घनिष्ठ मित्रता का था।" परस्पर के सम्बन्धों की व अभिनिष्क्रमण की अवगति दोनों के लिए ही आह्लादप्रद रही। दोनों का आत्मिक सामीप्य और सघन हो गया।
उत्तर मिर
एक प्रेरक प्रसंग
दोनों राजषि परिभ्रमण करते हुए एक ऐसे प्रदेश में पहुँचे, जहां अधिकांश लोग अलोना ही भोजन किया करते थे। दोनों राजर्षियों को भी भिक्षा में अलोना ही भोजन मिलता । गांधार राजर्षि उसे सह गये। विदेह राजर्षि सह नहीं सके। वे अलोने मोजन के कारण तिलमिलाए से रहते । एक दिन विदेह राषि को विसी दाता ने नमक लेने का आग्रह किया। राजषि ने बहुत सारा नमक ग्रहण कर लिया। गठरी में बाँधकर अपने पास रख लिया। सोचा-अब अलोनेपन की कोई चिन्ता नहीं, जब तक यह काम आता रहेगा। वे जानते थे कि भिक्षु के लिए संग्रह वर्जित है, पर अपनी मानसिक दुर्बलता के कारण उसे छोड़ नहीं सके । एक दिन दोनों राजर्षि भोजन के लिए बैठे। भोजन अलोना था। विदेह राजर्षि ने नमक की गठरी निकाली। अपने भोजन में नमक डालना शुरू किया। गांधार राजर्षि यह सब देख कर विस्मित भी हुए, क्षुब्ध भी हुए। दोनों में वार्तालाप ठन गया।
गांधार राजर्षि-"अरे ! यह क्या; आपने तो नमक की गठरी रख छोड़ी है ? भिक्षुचर्या के विरुद्ध ऐसा आचरण?"
विदेह राजर्षि- "मेरे से अलोना भोजन नहीं खाया जाता। नमक की गठरी पास
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