SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 758
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड: ३ में, गंदगी में पड़ा है । कहाँ आनन्दोल्लासमय पूजा और कहाँ यह स्थिति ! राजा को संसार के वास्तविक स्वरूप का बोध हुआ। उसके मन में संसार से विरक्ति उत्पन्न हो गई। वह प्रत्येक बुद्ध हुआ, पंचमुष्टि लोच कर प्रव्रज्या स्वीकार की। बौद्ध परम्परा में (कुम्भकार जातक) "अम्बाहमदं वनमन्त रस्मि......" कामुकता को निगृहीत करने के सन्दर्भ में शास्ता ने यह गाथा तब कही, जब वे जेतवन में विहार करते थे। कथानक इस प्रकार है शास्ता द्वारा मिक्षुओं का काम-विकार से परिरक्षण श्रावस्ती में पांच सौ गृहस्थ-मित्र थे। उन्होंने भगवान् बुद्ध का धर्मोपदेश सुना। उन्हें विरक्ति हुई। सभी ने भगवान् से प्रव्रज्या ग्रहण की, उपसम्पदा प्राप्त की। __ वे एक ऐसे घर में ठहरे हुए थे, जिसमें करोड़ बिछे थे। अर्ध-रात्रि का समय था। उनके मन में काम-संकल्प-कामुकता के भाव उत्पन्न हुए । शास्ता ने यह जाना । उन्होंने तीन बार दिन में, तीन बार रात में-यों दिन-रात में छ: बार उधर गौर कर, उन्हें जागरित कर, प्रकृतिस्थ कर उनकी उसी प्रकार रक्षा की, जिस प्रकार मुर्गी अपने अण्डे की रक्षा करती है, चंवरी गाय अपने पूंछ की रक्षा करती है, माँ अपने प्यारे बेटे की रक्षा करती है और काना अपने एक नेत्र की रक्षा करता है । जब जब-उन भिक्षुओं के मन में कामसंकल्प उत्पन्न होते, उसी समय शास्ता उनका निग्रह करते, दमन करते। एक दिन शास्ता ने भिक्षुओं के मन में उस अर्ध रात्रि को उत्पन्न काम-संकल्प पर विचार किया। उन्हें लगा-यदि यह संकल्प-काम वासना का भाव भिक्षुओं के मन में घर कर गया, तीव्र हो गया तो यह उनके अहंत्-दशा पाने के हेतु को विच्छिन्न कर डालेगा। अभी मैं उनके इस कामुकतामय संकल्प का उच्छेद करूं, उन्हें अर्हत्-दशा प्राप्त कराऊं। भगवान् गन्धकुटी से बाहर आये । स्थविर आनन्द को बुलाया और आदेश दिया"करोड़ बिछे घर में टिके हुए समग्र भिक्षुओं को बुलाओ, एकत्र करो।" आनन्द ने वैसा किया। वे भिक्षु वहाँ एकत्र हुए। काम संकल्पों के दमन का उपदेश भवगान् बुद्धासन पर विराजित हुए, उन्हें सम्बोधित कर कहा-"भिक्षुओ ! ऐसा उद्यम करते रहना चाहिए, जिससे मन में संकल्प विकल्प उठे ही नहीं। उठे तो उनके वशगत नहीं होना चाहिए। काम-संकल्पों की, काम-वासना की जब वृद्धि हो जाती है, तो वह शत्रु के सदृश अपना विनाश कर डालती है। यदि मन में जरा भी कामुकता का भाव पैदा हो तो तत्क्षण भिक्षु को चाहिए, वह उसे दमित करे । पुराने पंडितों ने-प्रज्ञाशील ज्ञानी जनों ने जरा-जरा-सी वस्तुओं, अति सामान्य स्थितियों या घटनाओं को देखकर प्रत्येक बुद्धत्व अधिगत किया। यों कहकर भगवान् ने पूर्व जन्म की कथा का प्रत्येक बुद्धों का वर्णन किया १. आधार--- उत्तराध्ययन सूत्र, १८.४६, सुखबोधा टीका। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy