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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चार प्रत्येक बुद्ध : जैन एवं बौद्ध-परम्परा में ६६७ दे दें तो अपना महामुकुट उनको दे सकता हूँ।
दूत वापस उज्जयिनी गया। उसने राजा चण्डप्रद्योत को वह संदेश कहा, जो पांचालनरेश ने उसके साथ भेजा था। चण्डप्रद्योत द्विमुख की यह मांग सुनकर बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ पांचाल-नरेश द्विमुख पर आक्रमण कर दिया। चण्डप्रद्योत पांचाल-देश की सीमा पर पहुँचा । वहाँ स्कन्धावार की रचना की-छावनी कायम की। अपनी सेना को गरुड-व्यूह के रूप में सुस्थित किया। राजा द्विमुख भी अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ सीमा पर आ डटा। उसने अपनी सेना को सागर-व्यूह के रूप में सुव्यवस्थित किया।
चण्डप्रद्योत पराजित : बन्दी
__ दोनों ओर से भीषण युद्ध होने लगा। द्विमुख के महामुकुट का ऐसा प्रभाव था कि उसकी सेना को जीता नहीं जा सका । चण्डप्रद्योत की सेना पीछे की ओर भागने लगी। चण्डप्रद्योत पराजित हो गया। द्विमुख के सैनिकों ने उसे बन्दी बना लिया। उसे कारागृह में डाल दिया गया।
चण्डप्रद्योत तथा मदनमंजरी का विवाह
एक दिन संयोगवश राजा चण्डप्रद्योत ने राजकुमारी मदनमंजरी को देख लिया। वह उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया। उसके मन में उसके प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया। वह उसके प्रति इतना मोहासक्त हो गया कि रात में उसे नींद नहीं आई । बड़ी कठिनाई से रात बीती। प्रात:काल राजा द्विमुख कारागृह में चण्डप्रद्योत को देखने आया। उसे चण्डप्रद्योत खिन्न एवं उदासीन दिखाई दिया। द्विमुख ने जब उसकी खिन्नता और उदासीनता का कारण पूछा तो चण्डप्रद्योत ने सारी बात सही-सही बतला दी। उसने इतना और कह दिया कि यदि उसे मदनमंजरी प्राप्त नहीं हो सकी तो वह अग्नि में कूद कर अपने प्राण दे देगा। चण्डप्रद्योत की बात से द्वि मुख प्रभावित हुआ। उसने अपनी कन्या का पाणिग्रहण चण्डप्रद्योत के साथ कर-दिया। चण्डप्रद्योत अपनी नव परिणीता रानी को लेकर उज्जयिनी चला गया। इन्द्र-महोत्सव
एक समय का प्रसंग है, काम्पिल्य नगर में इन्द्र-महोत्सव का आयोजन हुआ। राजाज्ञा के अनुसार नागरिकों द्वारा इन्द्रधनुष की स्थापना की गई। उसे तरह-तरह के फूलों, घंटियों, मालाओं तथा आभूषणों द्वारा सजाया गया । नगरवासियों ने उसकी सोल्लास पूजा की। उस समारोह के उपलक्ष्य में नृत्य होने लगे, गान होने लगे। लोग आमोद-प्रमोद में उल्लसित तथा आनन्द-निमग्न थे। एक सप्ताह तक यह समारोह चलता रहा। पूर्णिमा के दिन राजा द्विमुख ने इन्द्रध्वज का पूजन किया।
ध्वज-काष्ठ का दृश्य : वैराग्य
इन्द्र महोत्सव समाप्त हुआ। लोगों ने आभूषण आदि सजावट की सारी सामग्री उस पर से उतार ली तथा ध्वज-काष्ठ को राजमार्ग पर फेंक दिया। एक दिन राजा की उधर से सवारी निकली। उसने देखा, वह काष्ठ, जिसका इन्द्रध्वज में उपयोग हुआ, आज मल-मूत्र
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