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________________ ६६६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड :३ प्रत्येक बुद्ध द्विमुख पांचाल-नरेश जय पांचाल नामक देश था । उसमें काम्पिल्य नामक नगर था। वह पांचाल देश की राजधानी था। वहां के राजा का नाम जय था। उसका जन्म हरिवंशकुल में हुआ था। राजा जय की रानी का नाम गुणमाला था। एक दिन का प्रसंग है, राजा सभागृह में बैठा था। अपने राज्य, वैभव सत्ता एवं संपत्ति से वह प्रमुदित था। उसने अपने दूत से पूछा-"जगत् में क्या कोई ऐसी वस्तु है, जो मेरे यहाँ नहीं है, अन्य राजाओं के यहाँ है।" दूत बोला-'राजन् ! आप के यहाँ और तो सब है, किन्तु, चित्र-सभा नहीं है " चित्र-सभा : महामुकुट राजा ने ज्योंही यह सुना, फौरन चित्रकारों को बुलाया तथा चित्र-सभा का निर्माण करने का उन्हें आदेश दिया। चित्र-सभा के कार्य का शुभारंभ हुआ। नींव डालने हेतु जमीन की खुदाई होने लगी। खुदाई आगे से आगे चल रही थी कि पांचवें दिन जमीन में से एक रत्नमय, देदीप्यमान महामुकुट निर्गत हुआ। खनन-कार्य में संलग्न कर्मकरों ने राजा को सूचित किया। राजा यह जानकर बहुत हर्षित हुआ । चित्र-सभा के निर्माण का कार्य चलता रहा । कई दिन चला। चित्र-सभा बनकर तैयार हो गई। महामुकुट के कारण द्विमुख शुभ मुहूर्त में राजा ने चित्र-सभा में प्रवेश किया। मांगलिक वाद्य बज रहे थे। उनकी ध्वनि चित्र-सभा को गुंजा रही थी। राजा ने आनन्दोल्लासमय निनाद के बीच उस महामुकुट को मस्तक पर धारण किया । महामुकुट का कोई ऐसा विचित्र प्रभाव था कि उसके धारण करते ही राजा के दो मुख दृष्टिगोचर होने लगे। इस कारण लोगों में वह 'द्विमुख' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मदनमंजरी का जन्म __ समय बीतता गया। राजा के सात पुत्र उत्पन्न हुए, किन्तु, कन्या एक भी नहीं हुई। रानी गुणमाला इससे बड़ी खिन्न तथा उन्मनस्क रहने लगी। कन्या प्राप्त करने का लक्ष्य लिये वह मदन संज्ञक यक्ष की उपासना करने लगी। उसकी भक्ति एवं आराधना से यक्ष परितुष्ट हुआ। उसके वरदान से रानी के एक कन्या उत्पन्न हुई। मदन यक्ष के वरदान से उत्पन्न होने के कारण कन्या का नाम मदनमंजरी रखा गया। चण्डप्रद्योत और द्विमुख का युद्ध ___ उस समय उज्जयिनी में राजा चण्डप्रद्योत राज्य करता था। उसने पांचाल-नरेश द्विमुख के यहाँ महामुकुट होने की बात सुनी। उसने द्विमुख के पास अपना दूत भेजा। दूत के द्वारा द्विमुख को यह कहलवाया कि अपना महामुकुट उज्जयिनी-नरेश चण्डप्रद्योत को सौंप दीजिए, अन्यथा युद्धार्थ सन्नद्ध हो जाएं। राजा द्विमुख ने उज्जयिनी-नरेश चण्डप्रद्योत को यह उत्तर भिजवाया कि यदि उज्जयिनी-नरेश मुझे अनलगिरि हस्ती, अग्नि भीरु रथ, शिवा देवी तथा लोहजंघ लेखाचार्य Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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