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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग–चार प्रत्येक बुद्ध : जैन एवं बौद्ध परम्परा में ६६५
प्रत्येक बुद्ध नमि इसी पुस्तक के 'नमि राजर्षि : महाजनक जातक' प्रकरण के अन्तर्गत प्रत्येक बुद्ध नमि का नमि राजर्षि के रूप में विस्तृत वर्णन है । जब वे दाह-ज्वर से पीड़ित थे, तब रानियाँ उनके लेप हेतु चन्दन घिसती थीं। चन्दन घिसते समय हाथों के हिलने से कंकण परस्पर टकराते थे। वेदना-विह्वल राजा को वह आवाज बड़ी अप्रिय तथा कष्टकर प्रतीत होती थी।
रानियों ने अपने हाथों से कंकण उतार दिये। सौभाग्य के प्रतीक के रूप में वे केवल एक-एक कंकण पहने रहीं। इससे आवाज होना बन्द हो गया। इसी घटना से नमि राजर्षि को अन्तर्ज्ञान हुआ। उन्होंने अनुभव किया-सुख अकेलेपन में है, द्वन्द्व में सुख नहीं है। वहाँ दु:ख ही दुःख है । वे प्रत्येक बुद्ध हो गये।
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