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________________ ६६२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड: ३ दिन इन्द्र नामक विद्याधर युवक की दृष्टि उस पर पड़ी। उसके सौन्दर्य पर वह विमोहित हो उठा। उसने उसका अपहरण कर लिया। अपहृत कर वह उसे इस पर्वत पर ले आया। इस भव्य प्रासाद का निर्माण किया। उसके साथ विवाह करने के उद्देश्य से इस वेदी की रचना की, जो आप यहाँ देख रहे हैं। विद्याधर युवक इन्द्र कनकमाला के साथ बड़े ठाठ-बाट से विवाह करना चाहता था। उसने विवाह की तैयारियां शरू की। कनकमाला के एक भाई था। उसका नाम कनक ज्योति था। वह अपहर्ता युवक का पीछा करता हआ इस पर्वत पर पहुँच गया । उसने अपहर्ता को ललकारा। दोनों भिड़ गये। युवा थे, पराक्रमी थे, दोनों एक दूसरे के हाथ मारे गये। ___ कनकमाला ने अपने भाई को जो उसे मुक्त कराने आया था, जब मृत देखा तो बहुत घबरा गई। इतने में एक देव प्रकट हुआ। उसने उससे कहा-'बेटी ! घबराओ नहीं, मैं पूर्व जन्म का तुम्हारा पिता हूँ। मैं पिछले भव में चित्रकार चित्रांगद था, तुम मेरी पुत्री कनक मंजरी थी। अब तुम निर्भय रहो । मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। तुम्हें जरा भी कष्ट नहीं होने दूंगा।" इतना कहकर वह देव अन्तहित हो गया। कनकमाला कुछ आश्वस्त हुई । वहाँ रहने लगी। उधर उसका पिता विद्याधर दृढ़शक्ति पुत्र और पुत्री के वियोग में बड़ा दुःखित हो उठा। वह उनकी खोज करता करता उस पर्वत पर आया। उसने देखा-उसके पुत्र कनक ज्योति का शरीर खण्ड-खण्ड पड़ा है। उसकी पुत्री कनकलता का सिर कटा है, एक पेड़ से लटक रहा है। वह अत्यधिक शोकाहत हुआ। संसार की नश्वरता उसके समक्ष नग्न नृत्य करने लगी। उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ। पूर्व जन्म की स्मृति हुई। वह प्रतिबद्ध हुआ । संसार का परित्याग कर दिया, साधु हो गया। कुछ देर बाद जब प्रवजित विद्याधर दृढ़शक्ति ने इस पर्वत की ओर गौर से देखा तो उसे यह प्रासाद दृष्टिगोचर हुआ। उसने अपनी पुत्री कनकमाला को वहाँ घूमते हुए देखा वह विस्मित हो उठा- यह क्या रहस्य है ? इतने में वह व्यन्तर देव प्रकट हुआ। उसने सारा रहस्य उद्घाटित करते हुए बताया कि यह सब उसकी माया थी। __ यह सुनकर साधु ने कहा-"बहुत अच्छा हुआ। इस निमित्त से मैं संसार की मोहमाया से छूट गया।" कनकमाला भी मुनि के पास आई, दर्शन किये। मुनि ने धर्मोपदेश दिया, आशीर्वाद दिया। फिर मुनि आकाश-मार्ग द्वारा नन्दीश्वर द्वीप की दिशा में चला गया। कनकमाला ने अपने पूर्व जन्म के पिता व्यन्तर देव से कहा-"पूर्व जन्म में तुम मेरे पिता थे। इस जन्म के पिता ने संसार-त्याग कर दिया है। अब तुम ही मेरे पिता हो। मुझे रूपवान्, पराक्रमी, सम्पन्न और शालीन मनोवाञ्छित पति दो।" देव ने कनकमाला को आश्वस्त करते हुए कहा-'बेटी ! चिन्ता मत करो। कुछ समय पश्चात् सिंहरथ नामक राजा यहाँ आयेगा। वह ओजस्वी, तेजस्वी, बलसम्पन्न और सौन्दर्य सम्पन्न है। वही तुम्हारा पति होगा।" यह कहकर कनकमाला राजा के मुंह की ओर निहारने लगी, उसके भावों को पढ़ने लगी। उसने अनुभव किया, राजा के मन में विस्मय, हर्ष एवं उल्लास के भाव उठ रहे थे। उसने राजा के चरणों में अपना मस्तक झुकाया और बोली-"स्वामिन् ! वह कनकमाला मैं ही हूँ, और कोई नहीं। मैं कब से आपकी प्रतीक्षा में उत्कण्ठा लिये बैठी हूँ। आज का दिन मेरे लिए परम सौभाग्य का दिन है । मेरी मन:कामना पूर्ण हुई।" विद्याधर-कन्या द्वारा Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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