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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चार प्रत्येक बुद्ध : जैन एवं ब्रौद्ध-परम्परा में ६६१ थी, कुछ गुनगुना रही थी। दासियों ने रानियों को यह सूचना दी। जैसा रानियों को भ्रम था, उन्होंने समझा, निश्चय ही कनक मंजरी जादूगरनी है । वह राजा पर कोई जादू-कामन का प्रयोग कर रही है । उन्होंने राजा को उसके विरुद्ध भड़काने का इसे अच्छा अवसर समझा। वे राजा के पास गई और उसे शिकायत की-"जाकर जरा देखिए तो सही, आपकी प्रेयसी आपके लिए क्या कर रही है ? वह जादूगरनी है। आपको अपने वश में बनाये रखने हेतु अभी वह कोई मन्त्रोपचार करने में लगी है।" राजा को यह सब जानने की उत्कट जिज्ञासा हुई । वह तत्क्षण महल के उस प्रकोष्ठ के पास गया। द्वार के छिद्र में से उसने देखा, कनकमंजरी ने वैसे ही पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे, जैसे वह राजा के साथ विवाह होने से पूर्व अपने पिता के घर में पहनती थी। देखकर राजा आश्चर्यचकित हो गया। कनकमंजरी कुछ गुनगुना रही थी। राजा कान लगाकर सुनने लगा। कनकमंजरी अपने आपको संबोधित कर इस प्रकार कह रही थी-'कनक मंजरी ! आज रानी है। विपुल वैभव की स्वामिनी है। अनेक सेवक-सेविकाएँ तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा करते रहते हैं, किन्तु, वैभव और ऐश्वर्य की चकाचौंध में तू भ्रान्त मत हो जाना। तुझे स्मरण रहना चाहिए-तू एक गरीब चित्रकार की बेटी है। राजप्रिया, राजरानी बनकर तुझे गर्व से इतराना नहीं है । ये रत्न, हीरे, मोती, मानिक-सब कृत्रिम शोभा के हेतु हैं । मात्र इस जड़ शरीर का सौन्दर्य बढ़ाते हैं। सच्चा सौन्दर्य, सच्ची शोभा एवं अलंकृति तो शील, सदाचार, विनय तथा सौजन्य है, जिनसे आत्मश्री वृद्धिंगत होती है।" राजा ने जब कनकमंजरी के आत्मोद्गार सुने तो वह हर्ष-विभोर हो उठा-कितना उच्च चिन्तन, कितने शालीन विचार रानी के हैं। वास्तव में दूसरी रानियों ने विद्वेषवश मेरे मन में भेद उत्पन्न करने का कुत्सित प्रयत्न किया है। राजा के मन में कनकमंजरी के प्रति जो स्नेह था, और अधिक बढ़ गया। उसने उसे पटरानी पद पर अधिष्ठित किया। कनकमाला अपने पूर्व-वृत्त का आख्यान करती हुई राजा सिंहरथ से कहने लगी"महाराज ! राजा जितशत्रु और पटरानी कनकमंजरी अत्यन्त आनन्दोत्साह पूर्वक राज्यसुख का भोग करने लगे। कनकमंजरी परम बुद्धिमती होने के साथ-साथ बड़ी धर्मनिष्ठ भी थी। उसकी प्रेरणा से राजा ने विमलघोष नामक आचार्य से श्रावक-व्रत स्वीकार किये, रानी भी यथाविधि श्राविका बनी। दोनों धर्माचरण करते हुए रहने लगे।" __कनक मंजरी की रोचक कथा सुनने-सुनते राजा सिंहरथ ने कनकमाला से कहा"सुन्दरी ! कनक मंजरी की बात तो तुमने कही, अब अपने विषय में भी तो कहो।" जीवन के मोड़ कनकमाला मन्द स्मित के साथ बोली--"राजन् ! जरा धैर्य रखें। अब अपने प्रसंग पर आ रही हूँ। सुनें-कनक मंजरी का पिता चित्रकार चित्रांगद मर गया। मर कर वह व्यन्तर जाति के देव के रूप में उत्पन्न हुआ। कुछ समय के अनन्तर कनक मंजरी का भी निधन हो गया। कनक मंजरी ने वैताढ्य पर्वत पर दृढ़शक्ति नामक विद्याधर के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया। उसका नाम कनकमाला रखा गया। कनकमाला क्रमशः बड़ी हुई। तारुण्य में पहुँचते-पहुँचते उसका रूप, लावण्य सौ गुना, हजार गुना वृद्धिंगत हो उठा। एक ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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