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________________ ६१० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड: ३ पारदर्शी शीशे को मंजूषा एक सेठ था। उसके दो पत्नियां थीं। उनमें से एक घनी माँ-बाप की बेटी थी। उसे अपने पीहर से बहुत से गहने मिले थे। वह उन्हें एक मंजूषा में बन्द रखती। मंजूषा के ताला लगाये रहती। दूसरी गरीब मां-बाप की बेटी थी। उसे अपने पीहर से कोई बहुमूल्य वस्तु नहीं मिली थी ! अपनी सौत के आभूषण देखकर वह मन-ही-मन ईर्ष्यावश दुःखित रहती। उसके मन में आता, वह उन्हें चुरा ले। एक बार का प्रसंग है, वह धनी मां-बाप की बेटी सेठ की पत्नी अपने पीहर गई। पीछे से उसकी सौत ने उसकी मंजषा का ताला दूसरी चाबी से खोलने की चेष्टा की। चाबी लग गई। उसने गहने निकाल लिये। फिर पूर्ववत् ताला लगा दिया। कुछ दिन व्यतीत हुए। जिसकी मंजूषा से आभूषण चुरा लिये गये थे, वह सेठानी पीहर से वापस लौटी। दूर से ही अपनी मंजूषा पर ज्योंही उसने नजर डाली, उसे मालूम पड़ गया-उसकी मंजूषा से आभूषण निकाल लिये गये गये हैं। उसे यह अनुमान करते देर नहीं लगी कि उसके गहनों की चोरी उसकी सौत द्वारा हुई है । वह जोर-जोर से कोलाहल करने लगी। गांव के लोग जमा हो गये। उसकी सौत की तलाशी ली। सौत के पास सारे के सारे गहने मिल गये। दासी ने रानी से जिज्ञासा की कि मंजूषा को खोले बिना ही सेठानी को कैसे ज्ञात हो गया कि उसमें से गहने चोरी चले गये हैं ? रानी ने सदा की ज्यों बात टाल दी, कहा-"कल बतलाऊंगी। दूसरे दिन रात को दासी द्वारा पूछे जाने पर सुमधुर हास के साथ रानी ने कहा"वह मंजूषा पारदर्शी शीशे से बनी थी। अतः उसके भीतर जो भी वस्तुएँ होती, खोले बिना ही ज्यों-की-त्यों दिखाई पड़ जातीं। चोरी करने वाली सौत को इसका ध्यान नहीं था।" ईर्ष्या की आग इस प्रकार राजा जितशत्रु रानी कनकमंजरी द्वारा कही जाती मधुर रुचिकर कथाओं से आकृष्ट रहता। उन्हें सुनकर मन में बड़ा प्रसन्न होता। यों वह हर रोज उसके महल में आता रहता। दूसरी रानियों के मन में रानी कनकमंजरी के प्रति बड़ी ईर्ष्या उत्पन्न हुई। वे परस्पर कहतीं- "राजा ने हम सबका, जो उच्च कुलोत्पन्न हैं, लावण्यमयी हैं, एक प्रकार से परित्याग ही कर दिया है । एक सामान्य चित्रकार की पुत्री कनकमंजरी के प्रेम में राजा पागल बना है। लगता है, उसने राजा पर कोई मन्त्रोपचार, जादू-टोना कर रखा है। तभी तो राजा पूरी तरह उसके वश में है।" सब रानियों ने परस्पर विमर्श-परामर्श कर ऐसा निश्चय किया-जैसे भी हो, कनक मंजरी के प्रति राजा के मन में दुराव उत्पन्न कर देना चाहिए। उन्होंने अपनी दासियों को भी इस ओर सावधान कर दिया। वे सब कनकमंजरी के छिद्र, त्रुटियां देखने में सतर्क रहने लगीं। पैनी सूक्ष एक दिन की बात है, दूसरी रानियों की दासियों ने देखा, दोपहर के समय रानी कनकमंजरी अपने महल के एक बन्द कमरे में जीर्ण-शीर्ण वस्त्र धारण किये एकाकिनी बैठी Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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