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________________ ६८२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ पिता-पुत्र का परिचय साध्वी रानी पद्मावती ने सुना कि करकंडु और दधिवाहन के बीच युद्ध ठन गया है। युद्ध में होने वाले नरसंहार की कल्पना से रानी ठिठक उठी। वह विहार कर चम्पा गई । उसने दधिवाहन और करकडु का परस्पर परिचय कराया कि वे पिता-पुत्र हैं। युद्ध रुक गया। राजा दधिवाहन को संसार से वैराग्य हो गया। उसने अपना सारा राज्य करकंडु को सौंप दिया और स्वयं प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। बूढ़े बैल की दुरवस्था : प्रेरणा : ज्ञान करकंडु को गायों से, बछड़ों से बहुत प्यार था । एक दिन वह अपना गोकुलगोशाला देखने गया। उसकी दृष्टि एक दुबले-पतले बछड़े पर पड़ी। वह दयार्द्र हो गया। उसने आदेश दिया कि यह बछड़ा बहुत कमजोर है, इसकी माँ का सारा दूध इसे ही पिलाया जाए। जब यह बड़ा हो जाए तो अन्य गायों का दूध भी इसे दिया जाए। गोपालों ने राजा का आदेश स्वीकार किया। बछड़े को पर्याप्त दूध मिलने लगा। वह खूब बढ़ने लगा, परिपुष्ट होने लगा। वह तरुण हआ। उसमें बेहद बल था। राजा उसे देखकर अत्यधिक प्रसन्न होता था। कुछ समय व्यतीत हुआ। एक दिन राजा फिर गोकुल में आया । उसने देखा-वही बछडा, जो कभी युवा था, खूब हृष्ट-पुष्ट और अत्यन्त सशक्त था, आज वृद्ध हो गया है। उसके नेत्र भीतर धंसे जा रहे हैं। उसके पैर कमजोर हो गये हैं और वे चलने में लड़खड़ाते हैं। उसका बल क्षीण हो गया है । दूसरे छोटे-बड़े आते-जाते बैल उसे ढकेल जाते हैं । आज वह विवश हुआ सब सहन कर रहा है। कितना परिवर्तन आ गया है उसमें । उस बूढ़े बैल को देखकर राजा को संसार की परिवर्तनशीलता तथा नश्वरता का यथार्थ भान हो गया। उसे संसार से वैराग्य हुआ, वह प्रत्येक बुद्ध हुआ।' प्रत्येक बुद्ध नग्गति गान्धार नामक जनपद था। उसमें पुण्ड्रवर्धन नामक नगर था। वह गान्धार जनपद की राजधानी था । वहाँ सिंहरथ नामक राजा राज्य करता था। अश्व-परीक्षण एक समय का प्रसंग है । उत्तरापथ से अपने किसी मित्र राजा की ओर से गान्धारराज को दो अश्व उपहार में प्राप्त हुए। अश्वों के परीक्षण हेतु एक दिन राजा तथा राजकुमार उन पर आरूढ़ हुए । अनेक अश्वारोही, पदाति सैनिक साथ थे। जिस अश्व पर राजा सवार था, वह वक्र शिक्षित था । लगाम खींचने से वह अत्यन्त तेज दौड़ने लगता, लगाम ढीली छोड़ देने से धीमा हो जाता, रुक जाता। राजा को यह ज्ञान नहीं था। अश्व दौड़ा जा रहा था। राजा ने उसे धीमा करने के लिए लगाम खींची। अश्व और तेज हो गया। राजा ज्यों-ज्यों लगाम खींचता गया, अश्व उत्तरोत्तर तेज होता गया। यों दौड़ता-दौड़ता वह एक भयावह वन में पहुँच गया। राजा ने हार कर ज्यों ही लगाम ढीली छोड़ी, अश्व धीमा हो गया, रुक गया। १. -उत्तराध्ययन सूत्र १८.४६ सुखबोधा टोका। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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