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तत्त्व:आचार : कथानुयोग] कथानुयोग–चार प्रत्येक बुद्ध : जैन एवं बौद्ध-परम्परा में ६८१
श्मशानपाल ने बालक का नाम अवकीर्णक रखा। बालक श्मशानपाल के घर में बड़ा होने लगा। वह बाल्यावस्था में बड़े विचित्र खेल खेलता । अपनी समान आयु के बालकों बीच वह कहता-मैं तुम लोगों का राजा हूँ। मुझे कर अदा करो। एक बार अवकीर्णक की देह में सूखी खाज हो गई । वह अपने सहचरों से कहता-तुम अपने हाथ से मेरे खाज करो। इससे उसका नाम करकंडु पड़ गया।
राज्य-प्राप्ति
करकंडु साध्वी पद्मावती के प्रति, जो उसकी जन्मदात्री माँ थी, जिसका उसे कोई ज्ञान नहीं था, बड़ा अनुराग रखता था। साध्वी के हृदय में उस बालक के प्रति महज ममता थी ही, वह भिक्षा में प्राप्त मोदक आदि मिष्ठान्न उसे दे देती।
बालक क्रमशः बड़ा हुआ । श्मशानपाल द्वारा पालित-पोषित हुआ था, बड़े होने पर श्मशान की रखवाली करने लगा।
श्मशान के पास हो बांस का एक जंगल था। एक बार की घटना है, दो साधु उघर से निकल रहे थे। उनमें से एक साधु दण्ड के लक्षणों का विशेषज्ञ था। उसने बात ही बात में यह प्रकट किया कि अमुक-अमुक लक्षण युक्त दण्ड जो ग्रहण करेगा, वह राज्य का अधिपति बनेगा। क रकंडु तथा एक ब्राह्मण कुमार, जो वहाँ खड़े थे, दोनों ने यह बात सुन ली। सुनते ही तत्क्षण ब्राह्मण कुमार गया और वैसे लक्षणों से युक्त बांस का दण्ड काट लाया। करकंडु उससे बोला- "इस बाँस का स्वामी मैं हूँ; क्योंकि यह बाँस मेरे श्मशान में पैदा हुआ है, बढ़ा है। दोनों में विवाद होने लगा। दोनों न्यायालय में न्याय प्राप्त करने गये। न्यायाधीश का निर्णय करकंड के पक्ष में हुआ । उसने करकण्डु को वह दण्ड दिला दिया।
ब्राह्मण बहुत क्रुद्ध हुआ। चाण्डाल-परिवार को समाप्त कर देने का जाल रचा। चाण्डाल को किसी प्रकार इस का पता चल गया। वह अपने सभी पारिवारिक जनों के साथ कांचनपुर चला गया। कांचनपुर के राजा की मृत्यु हो गई थी। वह निष्पुत्र था। वहाँ की प्रथा के अनुसार राजा के चयन हेतु घोड़ा छोड़ा गया। घोड़ा सीधा चाण्डाल के घर की ओर गया, वहीं जाकर रुका । घोड़ा कुमार करकंडु के पास पहुंचा। उसकी परिक्रमा की और उसके समीप ठहर गया। राज्य के सामन्तगण घोड़े का पीछा करते हुए वहां आये। कुमार करकंड को वहां से ले गये। उसका राजतिलक हआ। वह कांचनपुर का राजा घोषित कर दिया गया।
ब्राह्मणकुमार को जब यह ज्ञात हुआ कि करकंडु कांचनपुर का राजा हो गया है तो वह एक ग्राम प्राप्त करने की आशा लिए करकंड के पास आया। उसने चम्पा राज्य में एक ग्राम प्रदान करने की याचना की। करकंडु ने चम्पा नरेश दधिवाहन को एक पत्र लिखा, जिसमें उसने उनसे अपने राज्य में ब्राह्मणकुमार को एक गाँव दे देने का अनुरोध किया। ब्राह्मणकुमार पत्र लेकर दधिवाहन के पास उपस्थित हुआ। दधिवाहन को पत्र दिया। दधिहान ने पत्र पढ़ा। उसने इसे अपना अपमान समझा। उसने करकंडु की भर्त्सना की। ब्राह्मणकुमार वापस कांचनपुर आया, राजा करकंडु को सारी बात निवेदित की। करकंडु नाराज हुआ। उसने चम्पा पर आक्रमण कर दिया।
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