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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड:३
लगी। हाथी जंगल की ओर भाग उठा । इस आकस्मिक घटना से राजा दधिवाहन और रानी पदमावती घबरा गये। हाथी भागा जा रहा था। सामने एक बरगद का पेड था। राजा ने रानी को समझाया, ज्योंही हाथी बरगद के पेड़ के नीचे से निकले, बरगद की शाखा पकड़ लेना। जैसा राजा ने अनुमान किया था, हाथी बरगद के नीचे से निकला। राजा फुर्तीला था। उसने झट बरगद की एक शाखा पकड़ ली, पर, रानी से वैसा नहीं हो सका। हाथी रानी को लिए भागता गया। राजा दधिवाहन बरगद के पेड़ से लटक कर बच तो गया, किन्तु, वह एकाकी रह गया। रानी के विरह में वह बहुत दुःखित हुआ।
हाथी भागता-भागता थक गया । वह एक निर्जन वन में रुका। वह बहुत प्यासा था। उसे एक सरोवर दिखाई दिया। वह पानी पीने के लिए सरोवर पर गया। रानी को अनुकूल अवसर प्राप्त हो गया। वह फौरन हाथी से नीचे उतर गई तथा सरोवर से दूर हो गई।
रानी किंकर्तव्यविमूढ थी। वह नहीं जानती थी, कहाँ जाए, क्या करे । वह इधरउधर दष्टि फैलाने लगी। उसे जब कुछ भी सूझ नहीं पड़ा तो वह भयभीत हुई एक दिशा की ओर आगे बढ़ी। कुछ दूर चलने पर उसे एक तापस दृष्टिगोचर हुआ। वह उसके निकट गई और उसको प्रणाम किया । तापस ने रानी का परिचय जानना चाहा। रानी ने बता दिया कि वह चम्पा-नरेश दधिवाहन की पत्नी तथा लिच्छिवि अधिनायक महाराज चेटक की पुत्री है । तापस बोला -“मैं भी वैशालिक महाराज चेटक का संगोत्रीय हूँ। तुम किसी बात का भय मत करो।" तापस ने रानी को आश्वासन दिया, धीरज बँधाया, फल दिये। रानी ने फल खाकर भूख मिटाई। रानो को साथ लिए तापस वहाँ से चला। कुछ दूर जाने के बाद उसने रानी से कहा-“देखो, यह ग्राम की समीपवर्ती भूमि है, हल-कृष्ट-हल से जुती हुई है। मैं ऐसी भूमि पर नहीं चल सकता। दन्तपुर नगर पास ही है । वहाँ दन्तवक्र राजा राज्य करता है । तुम निडर होकर वहाँ चली जाओ। वहाँ कोई अच्छा साथ प्राप्त हो जाए तो चम्पापुरी चली जाना।"
रानी पद्मावती तापस के निर्देशानुसार दन्तपुर पहुंच गई। वहाँ एक आश्रम था, जिसमें साध्वियाँ टिकी थीं। पद्मावती उन के पास गईं, उनको वन्दना की। साध्वियों के पूछने पर पद्मावती ने अपने पति, पिता, ससुराल, पीहर आदि का सब परिचय बता दिया, किन्तु, अपने गर्भवती होने का परिचय नहीं दिया।
साध्वियों के संसर्ग तथा उपदेश से रानी पद्मावती को संसार से विरक्ति हो गई। उसने प्रव्रज्या स्वीकार कर ली । उसका गर्भ बढ़ता गया । गर्भ के बाहरी लक्षण प्रकट होने लगे। महत्तरिका-प्रधान साध्वी ने जब यह देखा तो रानी से इस सम्बन्ध में जिज्ञासा की। रानी पद्मावती ने, जो अब साध्वी थी, सारी बात सच-सच बता दी । महत्तरिका ने इस बात को प्रकट नहीं किया, छिपाये रखा । यथासमय प्रसव हुआ, पुत्र उत्पन्न हुआ । साध्वी रानी ने उस नव प्रसूत बालक को रत्न कंबल में लपेटा, अपने नाम से अंकित मुद्रिका उसे पहना दी और उसे वह श्मशान में डाल आई। श्मशानपाल जब उधर आया तो उसने रत्नकंबल में लपेटी हुई वस्तु को उठाया, शिशु को देखा, उसे ले जाकर अपनी पत्नी को दे दिया। साध्वी रानी जब उपाश्रय में पहुँची, तब साध्वियों ने उसके गर्भ के सम्बन्ध में जिज्ञासा की। रानी ने उनसे कहा---मृत शिशु जन्मा था, मैंने उसे बाहर फेंक दिया है।" रानी ने श्मशानपाल की पत्नी के साथ धीरे-धीरे मित्रता कर ली।
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