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तत्त्वःआचार : कथानुयोग] कथानुयोग- चार प्रत्येक बुद्ध : जैन एव बौद्ध-परम्परा में ६७६
'कणयामर' मुनि कृत 'करकण्डु चरिअ' के अनुसार करकण्डु के पिता का नाम दन्तिवाहन एवं माता का नाम पद्मावती है। उक्त दोनों चम्पानगरी (अंग देश) के ही राजारानी बताए गए हैं, पर, पद्मावती को चेटक-कन्या न बतला कर कौशाम्बी के राजा वासुपाल एवं रानी वसुमती की कन्या बताया गया है। कथा के मूलभूत तथ्य श्वेताम्बर मान्यता के अनुरूप हो है। कुछ एक नये व भिन्न घटना-प्रसंग भी हैं। श्वेताम्बर परम्परा चारों प्रत्येक बुद्धों को मुक्त हुए मानती है। उक्त चरित के अनुसार करकण्डु सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न हुआ माना गया है।
श्वेताम्बर, दिगम्बर व बौद्ध इन सभी परम्पराओं में उक्त चार प्रत्येक बुद्धों के विषय में जो कुछ भी मिलता है, उसमें श्वेताम्बर-परम्परा का वर्णन अधिक व्यवस्थित व विस्तृत है। उत्तराध्ययन नियुक्ति में इन चार प्रत्येक बुद्धों के पारस्परिक संलाप का भी सम्मुलेख है।
क्षिति प्रतिष्ठित नगर के यक्षायतन में चारों ने चार दिशाओं से प्रवेश किया। चारों चार दिशाओं में अवस्थित हुए। यक्ष ने सोचा, मैं किसकी ओर पीठ रखू ? अच्छा यही है कि मैं किसी की ओर पीठ न रखू, मैं चारों ओर मुंह कर लूं। उसने वैसा ही कर लिया।
करकण्डु खुजली से पीड़ित था। उसने एक कोमल कण्डुयन से कान को खुजलाया और कण्डयन को संग्रह-बुद्धि से एक ओर छिपा लिया। द्विमुख ने यह सब देखा तो कहा"राजर्षे ! राजमहल और समस्त भोग-सामग्री का परित्याग करके आप भिक्षु बने और इस तुच्छ वस्तु का संग्रह ?"
___ इस पर करकण्डु कुछ कहना चाहते थे, पर, इसी बीच नमि राजर्षि ने द्विमुख से कहा -- “राजर्षे ! आपने सत्ता का त्याग किया, अब यह दूसरों पर हुकूमत क्यों हो रही है।" इस पर नग्गजित ने द्विमुख को लक्ष्य करके कहा-"जो सब कुछ छोड़ चुके हैं, वे पर की निन्दा कैसे कर सकते हैं ?" इस पर करकण्डु प्रत्येक बुद्ध ने कहा- “मोक्ष-मार्ग में प्रवृत्त साधु अहित-निवारण के लिए जो कहते हैं, वह सर्वथा निर्दोष होता है।” अस्तु, इन चारों प्रत्येक बुद्धों के जीवन-वृत्त भी पठनीय एवं मननीय हैं।
जैन परम्परा में प्रत्येक बुद्ध करकण्डु जन्म
चम्पा नामक नगरी थी । दधिवाहन नामक वहाँ का राजा था। दधिवाहन की रानी का नाम पद्मावती था । वह लिच्छिवि गणराज्य के अधिनायक महाराज चेटक की पुत्री थी।
रानी गर्भवती हुई। गर्भावस्था में उसके दोहद -एक विशिष्ट मनोरथ पैदा हुआ। वह उसे प्रकट नहीं कर सकी। प्रकट करते उसे लज्जा का अनुभव होता था। दोहद पूर्ण न होने से वह भीतर ही भीतर कुढ़ती गई। उसका शरीर सूखकर कांटा हो गया । राजा बड़ा चिन्तित हुआ। उसने बहुत आग्रह के साथ रानी के मन की बात पूछी। तब रानी ने अपनी आकांक्षा राजा के समक्ष व्यक्त कर दी।
__ जैसाकि रानी का दोहद था, रानी राजा की वेश-भूषा में सुसज्जित होकर गज आरूढ़ हुई। राजा स्वयं रानी का छत्रवाहक बना। वह रानी के मस्तक पर छत्र लगाये खड़ा रहा। रानी का यही मनोरथ (दोहद) था, जो पूर्ण हुआ। संयोग ऐसा बना, वर्षा होने
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