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[ खण्ड : ३
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन जीवित रहता है, पर उनका महावीर के तीर्थ में सम्मिलित होने का कोई विवरण नहीं मिलता । अतः यहाँ तक भी सम्भव तो है ही कि महावीर की वर्तमानता में भी ये चार प्रत्येक बुद्ध पार्श्व-परम्परा में ही सिद्ध-बुद्ध हुए हों ।
प्रस्तुत संदर्भ में एक बात विशेष ध्यान देने योग्य यह है कि ऋषि भाषित प्रकीर्णक में ४५ प्रत्येक बुद्धों का विवरण है, ऐसा माना गया है। उनमें से २० भगवान् अटिनेमि के तीर्थ में, १५ भगवान् पार्श्व के तीर्थ में और १० भगवान् महावीर के तीर्थ में हुए 13 पर, इन चार प्रत्येक बुद्धों का उन ४५ में कहीं भी नामोल्लेख नहीं है । मूल आगम साहित्य में भी इन्हें प्रत्येक बुद्ध के रूप में उल्लिखित नहीं किया गया है। सर्व प्रथम उत्तराध्ययन की निर्युक्ति में इनके प्रत्येक बुद्ध होने का उल्लेख मिलता है । दिगम्बर साहित्य में तो इन्हें प्रत्येक बुद्ध माना ही नहीं गया है। इस स्थिति में सम्भव है, इनके समान बोध-निमित्तों के आधार पर इनके प्रत्येक बुद्ध होने की व एक ही काल में होने की धारण उत्तराध्ययन व्याख्या-ग्रंथों धीरे-धीरे विकसित हुई हो ।
कालक्रम की दृष्टि से इस विषय में हम यथार्थ बिन्दु पर न भी पहुँच पाएं तो भी इसमें सन्देह नहीं कि इन चारों राजाओं के प्रकरण अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं । बौद्ध मान्यताओं के साथ इन्हें देखना और भी जिज्ञासावर्धक और आकर्षक है | नीचे दो कोष्ठकों द्वारा दोनों मान्यताओं के मूलभूत तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं । उनका पारस्परिक साम्य निश्चित ही दोनों परम्पराओं के किसी आदि सम्बन्ध का सूचक है। दोनों परम्पराओं का वह आदि सम्बन्ध भगवान् पार्श्व तक सीधे-सीधे जाता है । भगवान् पार्श्व के जीवन-वृत्त का सर्वाधिक महत्त्व - पूर्ण पहलू है कि महावीर और बुद्ध इन दोनों की परम्पराएँ पार्श्व परम्परा से लाभान्वित व समृद्ध हुई हैं।
नाम
१. करकण्डु २. द्विमुख ३. नमि
४. नग्गति
नाम
१. करकण्डु २. दुमुख ३. निमि
४. नग्गजी
जनपद
कलिंग
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पाञ्चाल
विदेह
गांधार
जैन ( श्वेताम्बर ) परम्परा
नगर
विदेह
गांधार
कांचनपुर काम्पिल्य
मिथिला
( पुण्ड्रवर्धन
( पुरिसपुर
बौद्ध परम्परा
जनपद
नगर
कलिंग
दन्तपुर उत्तर- पाञ्चाल कपिल
मिथिला
तक्षशिला
पिता का नाम दधिवाहन
जय
युगबाहु
दृढसिंह
पिता का नाम
१. वृत्तिपत्र २७८ व २८१.
२. इसिभासिय पढमासंगहिणी गाथा - १.
पत्तेय बुद्धि मिसिणो, वीसं तित्थे अरिट्ठणेमिस्स ।
पापस्स य पण्णरस
वीररस विलिणमोहस्स ।।
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वैराग्य निमित्त
बूढा बैल
इन्द्रध्वज
कंकण
आम्रवृक्ष
वैराग्य-निमित्त
आम्रवृक्ष
वृषभ
मांस खण्ड कंकण
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