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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
२० चार प्रत्येक बुद्ध : जैन एवं बौद्ध परम्परा में
चार प्रत्येक बुद्धों की मान्यता जैन परम्परा का एक मुख्य प्रसंग है । बौद्धपरम्परा में एक ही विमान से चार देवों का एक साथ च्युत होना, चार विभिन्न राजाओं के रूप में उत्पन्न होना, चार राजाओं का एक-एक विशेष निमित्त से प्रतिबुद्ध होना तथा विहार चर्या में चारों का एक यक्षायतन में आ मिलना, इस प्रसंग की विशेषताएँ हैं । उत्तराध्ययन के अनुसार करकण्डु कलिंग देश में, द्विमुख पाञ्चाल देश में, नमि विदेह देश में और नरगति गान्धार देश में हुए । इनके प्रतिबुद्ध होने के चार निमित्त यथाक्रम से वृषभ, इन्द्रध्वज, कंकण व आम्रवृहा बताए गये हैं । इन चार प्रत्येक बुद्धों के जीवन-वृत्त व जीवन - प्रसंग उत्तराध्ययन के व्याख्या ग्रंथों में पर्याप्त रूप से मिलते हैं। ये चार प्रत्येक बुद्ध कालक्रम की दृष्टि से कब हुए, वह ठीक से कह पाना कठिन है । इस विषय में नाना विद्वानों की नाना धारणाएँ हैं ।
डा० हेमचन्द्र राय चौधरी ने अपने ग्रंथ 'पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एनशिएंट इण्डिया' में बौद्ध जातकों में वर्णित प्रत्येक बुद्धों की चर्चा करते हुए उन्हें पार्श्व की परम्परा में बताया है । उसी धारणा के आधार पर उनका काल-निर्णय भी उन्होंने किया है । ३
इतिहासविद् श्री विजयेन्द्र सूरि ने अपने 'तीर्थंकर महावीर भाग - २' में राय चौधरी की उक्त धारणा का खंडन किया है । *
डा० हीरालाल जैन ने चार प्रत्येक बुद्धों में से एक करकण्डु का समय ई० पू० ८०० से ५०० के मध्य का माना है ।
डॉ० ज्योति प्रसाद जैन का मानना है - करकण्डु चरित के नायक कलिंग के शक्तिशाली नरेश करकण्डु भी ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। ये तीर्थंकर पार्श्व के तीर्थ में ही उत्पन्न हुए थे, और उन्हीं के उपासक तथा उस युग के आदर्श नरेश थे । राजपाट का त्याग कर जैन मुनि के रूप में उन्होंने तपस्या की और सद्गति प्राप्त की, ऐसा बताया जाता है । तेरापुर आदि की गुफाओं में प्राप्त पुरातात्त्विक चिह्नों से तत्सम्बन्धी जैन अनुश्रुति प्रमाणित होती है । इनके अतिरिक्त पाञ्चाल नरेश दुर्मुख या द्विमुख, विदर्भ नरेश भीम और गान्धार नरेश नामजित या नागाति, तीर्थंकर पार्श्व के अनुयायी अन्य तत्कालीन नरेश थे ।”६
दिगम्बर विद्वान् श्री कामता प्रसाद जैन ने भी करकण्डु राजा को पार्श्व परम्परा के अन्तर्गत ही माना है।
१. करकण्डु कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो । नमीराया विदेहेसु गान्धारेसु य नग्गई ||
— उत्तराध्ययन अध्याय १८, गाथा ४५: २. सुख बोधा टीका पत्र १३३ -१४५, निर्युक्ति गाथा २७० ३. पाँचवाँ संस्करण, पृष्ठ १४६.
४. पृ० ५७४.
५. मुनि 'कणयामर' कृत करकण्डु चरिअ की भूमिका, पृ० १५: ६. भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० ४६-४७.
७. भगवान् पार्श्वनाथ करकण्डु प्रकरण, पृ० ३६०-३६१.
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