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तत्त्वः आचारः कथानुयोग ] कथानुयोग — विजय-विजया : पिप्पली कुमार भद्रा कापि० ६७५ की अन्त्येष्टि होती है । "
अजात शत्रु ने इन्हीं के सुझाव पर राजगृह में बुद्ध का धातु निधान ( अस्थि गर्म ) बनवाया, जिसे कालान्तर में सम्राट् अशोक ने खोला और बुद्ध की धातुओं को दूर-दूर तक पहुँचाया ।
ये महाकाश्यप ही प्रथम बौद्ध संगीति के नियामक रहे हैं।
भिक्षुणी भद्रा कापिलायनी
भद्रा ने भी एक परम उच्च साधनावती भिक्षुणी के रूप में अपना जीवन अत्यन्त तितिक्षा भाव से व्यतीत किया । प्रस्तुत ग्रंथ के प्रथम खण्ड में जैसा उल्लेख हुआ है, बुद्ध ने एतदग्ग वग्ग' में अपने इकतालीस भिक्षुओं तथा बारह भिक्षुणियों को नामग्राह अभिनन्दित किया है एवं पृथक्-पृथक् गुणों में पृथक्-पृथक् भिक्षु भिक्षुणियों को अग्रगण्य बताया है । भक्षुणियों में अग्रगण्याओं की चर्चा के प्रसंग में बुद्ध ने कहा – “भिक्षुओ ! पूर्व जन्म की अनुस्मरणकारिकाओं में भद्रा कापिलायनी अग्रगण्या है ।'
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इस प्रकार पिप्पली कुमार तथा भद्रा ने भिक्षु महाकाश्यप और भिक्षुणी भद्रा कापिलायनी के रूप में अपना साधनामय जीवन सार्थक बनाया ।
१. दीघनिकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त ।
२. दीघनिकाय - अट्ठकथा, महा परिनिव्वाण सुत्त ।
३. विनयपिटक, चुल्लवग्ग, पंचशतिका खन्धक ।
४. अंगुत्तर निकाय, एकक निपात, १४ के आधार पर ।
५. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, खण्ड १, पृष्ठ २५५.
६. आधार — थेरगाथा अकट्ठथा ३०, संयुत्त निकाय अट्ठकथा १५.१.११, अंगुत्तरनिकाय
अट्ठकथा १.१.४, बुद्धच
पृष्ठ ४१-४५ ।
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