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________________ ६७४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ कर हम प्रव्रजित हुए हैं। जहाँ से शास्ता दृष्टिगत हुए, वहीं से वे विनत होकर चले, तीन स्थानों में वन्दन किया, भगवान् के समीप आये, निवेदित किया--"भन्ते ! आप मेरे शास्ता हैं-गुरु हैं ! मैं आपका श्रावक हूँ-शिष्य हूँ।" भगवान् ने उन्हें यथावत् उपदिष्ट कर उपसम्पदा प्रदान की।" चीवर-परिवर्तन भगवान् ने महाकाश्यप को अपना अनुचर श्रमण बनाया । शास्ता की देह महापुरुषोचित बत्तीस उत्तम लक्षणों से युक्त थी। महाकाश्यप की देह में सात उत्तम लक्षण थे। जैसे किसी बड़ी नौका से बँधी डोंगी उसके पीछे-पीछे चलती जाती है, उसी प्रकार महाकाश्यप शास्ता के पीछे-पीछे कदम बढाते जाते थे। शास्ता ने थोडा रास्ता पार किया। मार्ग से हटकर उन्होंने कुछ संकेत किया, जिससे लगा, वे वृक्ष के नीचे बैठना चाहते हैं। स्थविर ने यह जानकर कि शास्ता की बैठने की इच्छा है, अपने द्वारा पहनी हुई संघाटी को उतारा, उसके चार पर्त किये, उसे बिछा दिया। शास्ता उस पर बैठे। चीवर को हाथ से छूते हुए, मलते हुए बोले - 'काश्यप ! तुम्हारी यह रेशमी संघाटी कोमल है?" महाकश्यप ने सोचा-शास्ता मेरी संघाटी की कोमलता की चर्चा कर रहे हैं। स्यात धारण करना चाहते हों। उन्होंने कहा-"भन्ते आप इस संघाटी को धारण करें।" शास्ता बोले-"काश्यप ! फि पहनोगे?" ___ काश्यप ने निवेदन किया--"भन्ते ! यदि आपका वस्त्र मुझे प्राप्त होगा तो पहन लूंगा।" शास्ता ने कहा—'यह मेरा चीवर, जो पहनते-पहनते जीर्ण हो गया है, जो पांसुकूल है-फटे चीथड़ों को सी-सी कर जोड़ने से बना है, क्या तुम धारण कर सकते हो ? यह पहनते-पहनते जीर्ण बना बुद्धों का चीवर है । अल्पगुण पुरुष इसे धारण करने में समर्थ नहीं होता । सक्षम, धर्मानुसरण में सुदृढ़, आजीवन पांसुकूलिक पुरुष ही इसे धारण करने का अधिकारी है।" यों कहकर शास्ता ने स्थविर महाकाश्यप के साथ चीवर-परिवर्तन किया। भगवान् बुद्ध ने स्थविर महाकाश्यप का चीवर धारण किया और स्थविर ने भगवान् का चीवर पहना। स्थविर महाकाश्यप को इसका जरा भी अहंकार नहीं हआ कि उन्होंने बद्ध-चीवर प्र कर लिया है, अब उनके लिए क्या करना अवशेष है । वे केवल सात दिन पृथग्जन--अप्राप्त तत्व साक्षात्कार रहे । आठवें दिन वे प्रतिसंवित् सम्पन्न हो गये, अर्हत् पद प्राप्त कर लिया लिया।" भगवान् बुद्ध के जीवन की यह एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना मानी जाती है। इससे पिप्पली माणवक-स्थविर महाकाश्यप के अत्यन्त संस्कारी एवं पवित्र जीवन का पता चलता है। बुद्ध-संघ में प्रतिष्ठा महाकाश्यप बड़े विद्वान् थे। वे बुद्ध-सूक्तों के व्याख्याकार के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं । बुद्ध के निर्वाण प्रसंग पर वे मुख्य निर्देशक रहे हैं। पाँच सौ भिक्षुओं के परिवार से विहार करते जिस दिन और जिस समय वे चिता-स्थल पर पहुंचते हैं; उसी दिन, उसी समय बुद्ध ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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