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________________ तस्वः आचारःकथानुयोग ] कथानुयोग - विजय-विजया : पिप्पली कुमारभद्रा कापि० ६७१ जो स्वप्न संजोया था, उसके पूर्ण होने के आसार उन्हें नजर आने लगे। उन्हें अपार हर्ष हुआ। उन्होंने पर्यटक दल को पुरस्कृत कर बिदा किया । भद्रा - पिप्पली कुमार: चिन्तित घटनाक्रम के इस नये मोड़ से पिप्पलीकुमार बड़ा चिन्तित हुआ । वह दुविधा में पड़ गया, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। उधर भद्रा की भी वैसी ही स्थिति थी। दोनों के मन में यही था ; कैसे भी हो, विवाह का प्रसंग टले। दोनों के मन में एक ही विचार उठा, पत्र लिखें और उसमें अपने संकल्प का स्पष्ट रूप में उल्लेख करें । पिप्पली कुमार ने भद्रा को लिखा- "मैं प्रव्रज्या के लिए कृतनिश्चय हूँ । मुझसे विवाह क्यों करना चाहती हो ? उससे तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?" ठीक ऐसा ही पत्र भद्रा ने पिप्पली कुमार को सम्बोधित कर लिखा कि मैं विवाह करना नहीं चाहती। आजीवन ब्रह्मचर्य वास करूंगी। मुझसे आप क्यों विवाह करते हैं ? उससे आपका क्या सधेगा ? पत्र-परिवर्तन दोनों ने अपने विश्वस्त पत्र वाहकों को पत्र सौंपे और उन्हें गुप्त रूप में यथा-स्थान पहुँचाने के आदेश दिये। पिप्पलीकुमार का पत्र वाहक मगध से मद्रदेश की ओर चल पड़ा तथा भद्रा का पत्र वाहक मद्रदेश से मगध की ओर रवाना हुआ । चलते-चलते ऐसा संयोग बना, दोनों पत्र-वाहक, जिनमें एक पूर्व दिशा में और दूसरा पश्चिम दिशा में चल रहा था, मार्ग में एक स्थान पर मिले, एक वृक्ष की छाया में बैठे। दोनों का परस्पर परिचय हुआ । दोनों बड़े आश्चर्यान्वित थे, कैसा विचित्र संयोग है, एक पिप्पलीकुमार की ओर से भद्रा को तथा दूसरा भद्रा की ओर से पिप्पलीकुमार को पत्र पहुँचाने जा रहा है । दोनों जानते थे, भद्रा और पिप्पली कुमार के वैवाहिक सम्बन्ध की बातचीत है। दोनों का माथा ठनका। कहीं बसता घर उजड़ न जाए; इसलिए दोनों ने परस्पर परामर्श कर यह निश्चय किया कि पत्र खोल लिये जाएं । अस्तु, उन्होंने पत्र खोले । उन्हें पढ़ा तो उनके पैरों के नीचे की धरती खिसकने लगी । यह जानकर वे बड़े व्यथित हुए कि पिप्पलीकुमार और भद्रा दोनों ही ब्रह्मचर्य वास के लिये कृतसंकल्प हैं । यह सम्बन्ध नहीं हो पायेगा । सांसारिक ममतावश उनके मन में आया कि पत्र बदला दें, इन पत्रों के स्थान पर दूसरे पत्र लिखें । उन पत्रों को उन्होंने फाड़ डाला । जंगल में फेंक दिया । उन्होंने वैवाहिक सम्बन्ध जोड़ने के लक्ष्य से दूसरे पत्र लिखे, जिनमें दोनों की ओर से एक-दूसरे के प्रति पृथक्-पृथक् ऐसा भाव व्यक्त किया गया कि जो भी स्थिति हो, मुझे तुम्हारे साथ विवाह स्वीकार है । I पत्र दोनों के पास पहुँचे। दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ -- ब्रह्मचर्यं वास और विवाह; यह कैसा रहस्य है ! और कोई उपाय नहीं था । निश्चित तिथि पर बड़े आनन्दोत्साह एवं साज-सज्जा के साथ पिप्पली कुमार और भद्रा का विवाह हो गया । प्रथम रात्रि : विचित्र स्थिति प्रथम रात्रि - सुहाग रात्रि का समय था । शयन कक्ष सजा था। भद्रा तथा पिप्पलीकुमार शयन कक्ष में आये। दोनों की ओर से एक ही प्रयत्न था- वे एक-दूसरे से अस्पृष्ट रहें । भद्रा चाहती थी, पिप्पलीकुमार उसका स्पर्श न करे तथा पिप्पली कुमार चाहता था, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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