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६७२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३ भद्रा उसका स्पर्श न करे। कुछ देर तक यह स्थिति चलती रही। दोनों एक-दूसरे को नहीं समझ सके। पर जिज्ञासा हुई। गहि-जीवन में पूर्ण ब्रह्मचर्य का संकल्प
सारी बात सामने आई। तब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उनके पत्र बदल दिये गये। खैर, फिर भी दोनों ने सन्तोष माना और परस्पर निश्चय किया कि वे गहस्थ में रहते हुए भी ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्णतः पालन करेंगे। उनका समग्र बाह्य-सम्बन्ध पति-पत्नी का रहेगा। शयन भी एक ही शय्या पर करेंगे, किन्तु, अपना ब्रह्मचर्य अखण्डित रखेंगे। एक शय्या पर सोते हुए वे दोनों अपने मध्य एक पुष्पमाला रखेंगे। मन में वासना का उदय होते ही माला मुरझा जायेगी।
वे गृही के रूप में रहने लगे। दोनों का ब्रह्मचर्य-व्रत अखण्ति रूप में चलता रहा। बाह्य रूप में उनके पति-पत्नी सम्बन्ध में कोई प्रतिकूलता प्रतीत नहीं होती थी। माता-पिता शान्त थे। उन्हें परितोष था, बेटा और बहू सुख से रह रहे हैं। उन्होंने घर-गृहस्थी तथा व्यापार-व्यवसाय का सारा उत्तरदायित्व बहू और बेटे को सौंप दिया। पिप्पलीकुमार खेती और व्यापार सम्भालने लगा तथा भद्रा घर का सब कार्य, व्यवस्था देखती थी। जब तक माता-पिता जीवित रहे,यह सब चला
रोमांचक घड़ी
पिप्पलीकुमार एक दिन अपने गहनों से सजे घोड़े पर सवार होकर खेत पर गया । खेत लोगों से घिरा था । वह खेत की मेंड़ पर खड़ा हुआ। उसने खेत पर नजर दौड़ाई तो देखा, हलों द्वारा विदारित स्थानों में कौए आदि पक्षी कीड़ों-केंचुओं को निकाल-निकाल कर खा रहे थे। उसने अपने आदमियों से पूछा- "भाइयो! ये क्या खा रहे हैं ?"
उन्होंने कहा- "ये कीड़ों-केंचुओं को खा रहे हैं।" पिप्पलीकुमार बोला-"इनका पाप किसको लगेगा ?"
उन्होंने उत्तर दिया- "आर्य ! इनका पाप आपको लगेगा। हम तो आपके आज्ञाकारी अनुचर हैं।"
यह सुनते ही पिप्पलीकुमार विचार-मग्न हो गया। उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि सारी सम्पत्ति, धन-धान्य आदि भद्रा को सौंपकर प्रवजित हो जाऊंगा।
इसी प्रकार का प्रसंग भद्रा के साथ भी घटित हुआ। भद्रा ने तीन घड़े तिल सुखाने के लिए दासियों द्वारा फैलाये गये । वह दासियों के साथ वहां बैठी, तिलों में स्थित कीड़ों को पक्षियों द्वारा खाये जाते देखा । उसने दासियों से पूछा-"ये क्या खा रहे हैं ?"
दासियां बोली-"आर्ये ! ये कीड़े खा रहे हैं ?" भद्रा ने पूछा- “यह पाप किसको होगा?"
दासियों ने कहा- "आर्य ! यह पाप आपको ही होगा। हम तो वही करती हैं, जो आप कहती हैं।"
___ भद्रा सहसा चौंक उठी-यह सारा पाप मुझको लगता है ! मुझे तो मात्र चार हाथ कपडे तथा नाली भर--लगभग सेर भर मात की आवश्यकता है। यह सब मैं क्यों करूं । यदि ऐसा ही क्रम रहा तो हजार जन्म में भी मैं इनसे उन्मुक्त नहीं हो पाऊंगी। आर्यपुत्र ज्यों ही आयेंगे, उनको धन-वैभव, घर-गृहस्थी सौंपकर में प्रव्रज्या स्वीकार करूंगी।
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