________________
तत्त्व : आचार:
तत्त्व
संग्रह का परिवर्जन करो।' तृष्णा का विप्रहान--विनाश मोक्ष कहा जाता है।'
तृष्णा-क्षय-तृष्णा-नाश सब दुःखों को जीत लेता है-तृष्णा का नाश होने से सब दुःख नष्ट हो जाते हैं।
भगवान् तथागत ने सुनक्खत्त लिच्छवि पुत्र को संबोधित कर कहा -
"तृष्णा शल्य है--कांटा है, बाण की तीखी नोक सदृश है। अविद्या विष है। इनका रोपण-वपन, छन्द-राग-लालच और व्याप-द्रोह, डाह या द्वेष के कारण होता है।"
जम्बूखादक परिव्राजक ने सारिपुत्त से जिज्ञासा की-"आयुष्मन् सारिपुत्त ! लोग तृष्णा की पुनः पुन: चर्चा करते हैं, तृष्णा-तृष्णा कहते हैं, आयुष्मान् ! तृष्णा क्या है ?"
सारिपुत्त ने कहा--"आयुष्मन् ! काम-तृष्णा, भव-तृष्णा तथा विभव-तृष्णातृष्णा तीन प्रकार की है।"
परिव्राजक ने फिर प्रश्न किया-"क्या कोई ऐसा मार्ग है, जिसका अवलम्बन करने से तृष्णा का प्रहाण या नाश हो सकता है ?"
सारिपुत्त ने कहा-"आर्य ! अष्टांगिक मार्ग ही वह मार्ग है, जिसके अवलम्बन से तृष्णा का प्रहाण या नाश हो सकता है।"
"आयुस्मन् ! अप्रमत्त -प्रमादरहित-सावधान होकर उस पथ पर गतिशील रहना चाहिए।"५
जम्बूखादक परिव्राजक ने आयुस्मान् सारिपुत्त से जिज्ञासा की-"आयुष्मान् सारिपुत्त ! लोग भव की पुनः-पुन: चर्चा करते हैं, भव-भव कहते हैं, आयुष्मान् ! भव क्या है ?"
____सारिपुत्त ने कहा- "आयुस्मान् ! काम-भव, रूप-भव तथा अरूप-भद—ये तीन भव हैं।"
परिव्राजक ने फिर पूछा--"क्या कोई ऐसा मार्ग है, जिसका अवलम्बन करने से इन भवों का प्रहाण या नाश हो सकता है ?"
१. सन्निधि परिवज्जये।
-थेरगाथा ७०१ २. तण्हाय विप्पहानेन निव्वाणं इति वच्चति ।
-सुत्तनिपात ६८.५ ३. सब्बदानं धम्मदानं जिनाति, सब्बं रसं धम्मरसो जिनाति । सब्बं रति धम्मरती जिनाति, तण्हक्खयो सब्बदुक्खं जिनाति ।।
- धम्मपद २४.२१ ४. मज्झिमनिकाय ३.१.५ सुनक्खत्त सुत्तन्त पृष्ठ ४४७ ५. संयुत्त निकाय दूसरा भाग तण्हा सुत्त ३६.१० पृष्ठ ५६
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org