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तस्वः आचारः कथानुयोग] कथानुयोग - विजय-विजया : पिप्पलीकुमार भद्रा कापि० ६६६ पिप्पली कुमारभद्रा कापिलायनी
जन्मजात संस्कार
मगध देश का प्रसंग है । वहाँ महातिथ्य नामक ब्राह्मण-ग्राम में कपिल नामक ब्राह्मण रहता था । उसके एक पुत्र था । वह बड़ा सुन्दर, सुकुमार और सौम्य था । उसका नाम पिप्पली कुमार था । उसमें वैराग्य के जन्मजात संस्कार थे । वह क्रमशः बड़ा हुआ । जब वह बीस वर्ष का हुआ माता-पिता ने चाहा, वे उसका विवाह करें। उन्होंने पुत्र के समक्ष यह प्रस्ताव रखा । माणवक पिप्पली ने अपने दोनों कानों में अंगुलियाँ डाल लीं । माता-पिता से कहा -- "मुझे यह मत सुनाइए । मैं विवाह नहीं करूंगा ब्रह्मचर्य - वास करूंगा, प्रव्रजित होऊंगा।"
माता-पिता ने ज्योंही पिप्पलीकुमार के मुख से यह सुना, वे स्तब्ध रह गये । इकलौता प्यारा बेटा विवाह न करे, इसकी कल्पना मात्र से उनका रोम-रोम काँप गया । उन्होंने कहा - "पुत्र ! ऐसा कैसे हो सकता है ? तुम्हीं तो हमारे एक मात्र आशा केन्द्र हो ।'
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स्वर्ण- पुतलिका
पिप्पली कुमार माता-पिता की मनोदशा देखकर बड़ा चिन्तित हुआ, किन्तु, वह दृढ़ संस्कार-सम्पन्न था, संकल्प का धनी था। मन-ही-मन यह दृढ़ निश्चय किये रहा कि वह वैवाहिक जीवन स्वीकार नहीं करेगा। वह अपने माता-पिता को अनेक प्रकार से समझाता, किन्तु, उसके समझाने का उनके मन पर कोई असर नहीं होता। वे बार-बार विवाह की रट लगाते रहते । पिप्पली कुमार विनय-पूर्वक अस्वीकार करता रहता ।
पिप्पली कुमार ने विचार किया - माता-पिता ममता-वश मेरी बात नहीं मानते; अतः मुझे कोई ऐसा उपाय खोजना चाहिए, जिससे सहज ही यह प्रसंग टल सके ।
उसने 'खूब सोच-विचार कर स्वर्णकार से एक परम रूपवती स्वर्ण- कन्या का निर्माण करवाया । उसे लाल वस्त्र पहना कर, विविध प्रकार के पुष्पों एवं आभरणों से आभूषित कर बह अपने घर लाया । माता-पिता को भुलावे में डालने की "यदि ऐसी कन्या मिले तो मैं विवाह करूं, अन्यथा नहीं ।" ऐसी कन्या कहीं भी प्राप्त नहीं होगी । विवाह का प्रसंग संकल्प पूर्ण करने का अवसर सहज ही प्राप्त हो जायेगा । कन्या की खोज
भावना से उसने उनसे कहा--- वह मन ही मन समझता था, स्वयं टल जायेगा । उसे अपना
पुत्र के मुंह से यह सुनकर माता-पिता का मन हर्ष से खिल गया । उन्होंने सोचाऐसी कन्या खोज निकालेंगे, माणवक का विवाह रचायेंगे ।
खूब धनाढ्य थे ही। अपने विश्वस्त आठ ब्राह्मणों का एक पर्यटक दल बनाया। उन्हें वह स्वर्ण कन्या सौंपी और कहा - "जहाँ भी ऐसी जाति, गोत्र, कुलशील युक्त ऐसी कन्या मिले, सम्बन्ध निश्चित करो। कोई चिन्ता नहीं, जो भी व्यय हो, गाँव-गाँव और नगर - नगर को छान डालो।"
पर्यटक दल उस स्वर्ण प्रतिमा को लिये निकल पड़ा । गाँव-गाँव, नगर-नगर घूमता गया, पर, वैसी कन्या कहाँ प्राप्त हो । उन्हें यों घूमते देख अनेक लोगों को कुतूहल होता, अनेक जन उपहास करते, किन्तु, पर्यटक दल के लोग इसकी कुछ चिन्ता किये बिना अपने
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