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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन . [खण्ड : ३ "साधु खो पण्डितो माम, नत्वेव अतिपण्डितो।
अतिपण्डितेन पुत्तेन, मनम्हि उपकलितो॥ - जो वास्तव में पांडित्य से युक्त होता है, किसी भी कार्य के कारण-अकारण को सही जानता है, वही श्रेष्ठ है । जो केवल नाम से अति पंडित होता है, वास्तव में पांडित्य युक्त नहीं होता, कुटिल होता है, वह श्रेष्ठ नहीं होता । मेरे इस अतिपंडित नामक पुत्र ने, जो केवल नाम का अतिपंडित है, वस्तुतः कुटिल है, मुझे पूरा जला दिया होता, मैं तो अधजला ही इधर से छूट पाया हूँ।"
धन का समान विभाजन
फिर उन दोनों ने बराबर-बराबर धन, सामान आदि बाँटा । वे यथासमय कालधर्म को प्राप्त हो कर अपने-अपने कर्मों के अनुसार परलोक गये। पूर्व समय में जो कुटिलजालसाज व्यापारी था, वह इस समय का कुटिल व्यापारी है, पंडित संज्ञक व्यापारी तो मैं ही था।"
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