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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-कपटी मित्र : प्रवंचना : कूट वा० जा० ६५६
वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त राज्य करता था। उस समय बोधिसत्त्व वाराणसी में वणिक्कुल में उत्पन्न हुए। नामकरण के दिन उनका नाम पंडित रखा गया। सवयस्क होने पर वे एक दूसरे वणिक् के भागीदार के रूप में व्यापार करने लगे। उस दूसरे वणिक् का नाम अतिपंडित था। उन दोनों ने वाराणसी में पांच सौ गाड़ियों पर विक्रेय सामान लादा, देहात में गये, व्यापार किया, लाभार्जन किया। वे दोनों वापस वाराणसी लौटे।
अजित लाभ
सामान के अजित लाम के बंटवारे का समय आया। अतिपंडित नामक वणिक बोला- "मुझे दो भाग मिलने चाहिए, इसलिए कि तू पंडित है, मैं अतिपंडित । पंडित एक माग का अधिकारी होता है, अतिपंडित दो का।"
पंडित नामक वणिक् ने कहा- "जरा विचार करो, क्या हम दोनों का भंडमलमूल पूंजी, बैलगाड़ी आदि साधन एक समान नहीं रहे हैं ? वे सभी तो एक सदृश थे, फिर तुम दो भागों के अधिकारी कैसे हुए।"
__ अतिपंडित नामक बनियां बोला- "अतिपंडित होने के कारण मुझे दो भाग मिलने चाहिए।" बात बढ़ती गई । उसने झगड़े का रूप ले लिया।
दुरुपाय
___ अतिपंडित ने मन-ही-मन एक उपाय सोचा। अपने पिता को एक वृक्ष के कोटर में बिठाया। उसने कहा कि हम दोनों वृक्ष के पास आयेंगे और पूछेगे, तब यही कहना कि अतिपंडित को दो माग मिलने चाहिए।
___ अतिपंडित नामक बनियां पंडित नामक बनिये (बोधिसत्त्व) के पास जाकर बोला-“सौम्य ! मुझे दो भाग मिलें, यह उचित है या अनुचित है, इसका रहस्य वृक्षदेवता जानते हैं । आओ, हम उनके पास चलें, उनसे पूछे।" यों कहकर, उसे सहमत कर, उसे साथ लिए वह वृक्ष के समीप गया और वृक्ष को सम्बोधित कर बोला-"आर्य वृक्ष देवता ! हमारे संघर्ष का आप निर्णय करें।"
वृक्ष के कोटर में स्थित अतिपंडित के पिता ने बोलने का स्वर बदलकर कहा"तुम्हारा कैसा झगड़ा है, बतलाओ।"
वह बोला-"आर्य ! यह पंडित है और मैं अतिपंडित । हम दोनों ने भागीदारी में व्यापार किया। अब हम अजित लाभ को बांटना चाहते हैं। कृपया निर्णय कीजिये... किसको क्या मिलना चाहिए?"
वृक्ष के कोटर में छिपा अतिपंडित का पिता बोला-"पंडित को एक भाग मिलना चाहिए और अतिपंडित को दो।"
__बोधिसत्त्व ने जब संघर्ष का ऐसा निर्णय सुना तो विचार किया कि यहाँ देवता है अथवा अदेवता, मुझे इसकी जांच करनी चाहिए। यह सोचकर वे पुवाल लाये, वृक्ष के कोटर में भरा, उसमें आग लगा दी। आग धधकनी शुरू हो गई, आगे बढ़ने लगी। अतिपंडित के पिता का शरीर जलने लगा। वह अपने अधजले शरीर के साथ वृक्ष के ऊपर चढ़ गया, उसकी डाली पकड़ कर लटक गया। लटकता हुआ भूमि पर गिर पड़ा। धरती पर गिरकर वह बोला
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