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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ ऐसे लोग हैं, जो कुटिल के प्रति उसी की ज्यों कुटिलता का व्यवहार करना जानते हैं, मायावी के साथ माया करना जानते हैं । पुत्र के लिए बिलखने वाले वणिक् ! जिस के फाल तुमने गायब किये हैं, दे दे । उसके फाल उसे मिल जायेंगे तो वह फिर तुम्हारे पुत्र को क्यों ले जायेगा - तुम्हें तुम्हारा बेटा सौंप देगा ।" नगरवासी वणिक् बोला- "मैं इसके फाल इसे सम्हलाता हूँ । यह मेरा पुत्र मुझे लौटा दे।" ग्रामवासी वणिक् ने कहा- "स्वामिन् । मैं इसका बेटा देता ६५८ दे ।” यों जिसका बेटा खो गया था, उसे उसका बेटा मिल गया, जिसके फाल गायब हो गये थे, उसको उसके फाल मिल गये। दोनों व्यापारी अपने-अपने कर्मानुसार आगे गये । शास्ता ने कहा - " इस समय का कुटिल व्यापारी तब का कुटिल व्यापारी था, पंडित व्यापारी ही तब का पंडित व्यापारी था। मुकदमे का निर्णय करने वाला विनिश्चय - अमात्य मैं ही था ।" कूट वाणिज जातक दो साझेदार श्रावस्ती नगरी में दो व्यक्ति साझेदार के रूप में व्यापार करते थे । वे गाड़ियों में सामान लादकर व्यापारार्थ देहातों में गये । लाभार्जन किया। वापस लौटे। उन दोनों में जो ठग बनियां था, वह सोचने लगा- यह मेरा साझेदार यात्रा में बहुत समय तक यथेष्ट भोजन तथा शयन आदि न मिलने के कारण कष्ट झेलता रहा है । यह घर में तरह-तरह के स्वादिष्ट पदार्थ भर पेट खायेगा, अजीर्ण से पीड़ित होगा, मरेगा । तब मैं अर्जित सब सामान को अर्जित संपत्ति को तीन भागों में बादूंगा। एक भाग उसके बच्चों को दूंगा और दो भाग में स्वयं लूंगा । धूर्त बनिये की दुर्भावना जब भी बंटवारे की बात चलती, वह धूर्त बनियां आज बाँटेंगे, कल बाँटेंगे, यों टालमटोल करता, बँटवारा करना नहीं चाहता । पंडित — चतुर बनिये ने उस बनिये पर, जो बँटवारा करना नहीं चाहता था, जोर डाला, बँटवारा करवा लिया। वैसा कर वह भिक्षुविहार में गया। वहां शास्ता को — भगवान् बुद्ध को प्रणाम किया, कुशल क्षेम पूछा । भगवान् ने कहा---''तुमने इतनी देर की, तुम्हें आये बहुत समय हो गया । बुद्ध की सेवा में इतनी देर से उपस्थित हुए ?" उस पंडित बनिये ने सारी बात भगवान् से निवेदित की। भगवान् बोले- " उपासक । यह बनियां केवल इस जन्म में ही ठग नहीं है, पूर्व जन्म में भी यह ठग था । इस समय इसने तुझे ठगना चाहा, पूर्व जन्म में भी यह पंडितों कोचतुर जनों को ठगने का प्रयत्न करता रहा । " बोधिसत्त्व का वणिक्-कुल में जन्म । यह मेरे फाल लौटा यों कहकर भगवान् ने इसके पूर्व जन्म की कथा कही - Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only - "पूर्व समय की घटना है, www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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