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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - कपटी मित्र : प्रवंचना : कूट वा० जा ० ६५.७
है, दुष्ट है, चोर है । अभी मैं न्यायालय में जा रहा हूँ ! सारा फैसला वहीं होगा ।" यों कह कर वह न्यायालय की ओर चला ।
ग्रामवासी बनियां भी तुम्हें जो ठीक लगे करो, कहता हुआ उसके साथ-साथ न्यायालय में गया । न्यायासन पर विनिश्चय अमात्य के रूप में बोधिसत्त्व विराजित थे । धूर्त व्यापारी ने उनसे निवेदन किया- "स्वामिन् ! यह मेरे बेटे को साथ लेकर सरोवर पर स्नान करने गया । स्नान कर जब वापस लौटा तो मेरा बेटा उसके साथ नहीं था। मैंने पूछा, मेरा बेटा कहाँ है ! यह कहता है, चिड़िया उसे पंजों में उठाकर आकाश में उड़ गई । आप इस मुकदमे का निर्णय करें ।"
बोधिसत्त्व ने ग्रामवासी बनिये से पूछा- - "क्या यह सत्य है ?"
उसने कहा - "स्वामिन् ! मैं बच्चे को साथ लेकर नहाने गया । चिड़िया द्वारा उसे उठाने की बात सच ही है । "
बोधिसत्त्व बोले- - "क्या इस जगत् में चिड़ियां बच्चे को उठाकर ले जाती हैं ?" "स्वामिन् ! मेरा भी आपसे सविनय पूछना है कि यदि चिड़ियां बालकों को उठाकर नहीं उड़ सकतीं तो क्या लोहे के फाल मूषिक खा सकते हैं ?"
बोधिसत्त्व पूछने लगे - "तुम्हारे कहने का क्या अभिप्राय है ?”
"स्वामिन् ! मैंने इन नगरवासी बनिये के घर में लोहे पाँच सौ फाल धरोहर के रूप में रखे । यह कहता है कि तुम्हारे लोहे के फाल मूषिक खा गये। ये उनकी मेंगनियां हैं । ऐसा कहकर यह मुझे मेंगनियां दिखाता है । स्वामिन् ! यदि मूषिक लोहे के फाल खा सकते हैं तो चिड़ियां भी बच्चों को लेकर आकाश में उड़ सकती हैं। यदि मूषिक फाल नहीं खाते तो चिड़ियां तो क्या, बाज तक भी बच्चों को नहीं ले जा सकते। जो यह कहता है कि तेरे फाल मूषिक खा गये, मूषिकों ने फाल खाये या नहीं, कृपया इसका परीक्षण करें, मेरे मुकदमे का निर्णय करें।"
बोधिसत्व द्वारा फैसला
बोधिसत्त्व को प्रतीत हुआ, इस ग्रामवासी वणिक् ने शठ के प्रति शठता का आचरण कर धूर्त वणिक् को निरस्त करने की बात विचारी होगी । तब उन्होंने निम्नांकित गाथाएँ कहीं
"सठस्स साठेय्यमिदं सुचिन्तितं, पचड्डितं पतिकूटस्स कूटं । फालञ्चे अदेयुं मूसिका, कस्मा कुमारं कुळला नो हरेय्युं ॥ कूटस्स हि सन्ति कूटकूटा, भवति चापि निकतिनो निकव्या । देहि पुतट्ठ फालनट्ठस्स फालं, माँ ते पुत्त महासि फालनट्ठो ।"
शठ के प्रति जो शठतापूर्ण व्यवहार सोचा है, शठ की दृष्टि से वह ठीक है । कुटिल को परास्त करने के लिए कुटिलता का जाल फैलाया गया है । यदि मूषिक लोहे के फाल खाएं तो चिड़ियां बच्चों को क्यों नहीं आकाश में ले उड़ें ।
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